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________________ - - mandidasNAAAAAAANA Arvin अध्याय सुबोधिनी टीका। ९७ सर्वथा स्वतन्त्र माननेसे पदार्थ व्यवस्था ही नहीं बनती है, क्योंकि पदार्थका स्वरूप कथश्चित् विधि निषेधात्मक उभय रूप है। विशेषरूपनिदर्शनमेतत्तदिति यदा केवलं विधि ख्यः । अतदिति गुणो पृथक्त्वात्तन्मानं निरवशेषतया ।। ३३॥ अदिति विधिविवक्ष्यो मुख्यास्यात् केवलं यदादेशात् । तदिति स्वतो गुणत्वादविवक्षितमित्यतन्मात्रम् ॥ ३३४ ।। अर्थ-विधि निषेधकी परम्पर सापेक्षतामें इतना विशेष है कि जिस समय केवल विधिको मुख्यतासे कहा जाता है उस समय अतत् अर्थात् निषेध कथन गौण हो जाता है, क्योंकि वह विधिसे जुदा है । विधिकी विवक्षामें वस्तु केवल विधि रूप ही प्रतीत होती है। उसी प्रकार जब 'अतत्' यह विधि कथन विवक्षित होता है, तब आदेशानुसार केवल वही मुख्य होजाता है, उस समय तत् कथन अविवक्षित होनेसे गौण होजाता है, अतत् विवक्षामें वस्तु तन्मात्र नहीं समझी जाती किन्तु अतन्मात्र ही समझी जाती है। यही विधिनिषेधका स्वरूप निदर्शन है। भावार्थ-भेद विवक्षामें वस्तु भिन्न भिन्न रूपसे प्रतीत होती है अभेद विवक्षामें एक रूपसे प्रतीत होती है । और प्रमाण विवक्षामें एक रूपसे अर्थात् उभयात्मक प्रतीत होती है। शेषविशेषाख्यानं ज्ञातव्यं चोक्तवक्ष्यमाणतया। सूत्रे पदानुवृत्ति ह्या सूत्रान्तरादिति न्यायात् ॥ ३३६ ॥ अर्थ-इस विषयमें विशेष व्याख्यान पहले कहा जा चुका है तथा आगे भी कहा गया है, वहांसे जान लेना चाहिये । ऐसा न्याय भी प्रसिद्ध है कि कोई बात किसी सूत्रमें यदि न हो तो वह दूसरे सूत्रसे लेली जाती है। जैसे कि व्याकरणादिमें पूर्व सूत्रसे पदोंकी अनुवृत्ति करली जाती है। शङ्काकारननु किं नित्यमनित्यं किमथोभयमनुभयश्च तत्वं स्यात् । व्यस्तं किमथ समस्त क्रमतः किमथाक्रमादेतत् ॥३३६॥ अर्थ-क्या वस्तु नित्य है, अथवा अनित्य है ? क्या उभयरूप है, अथवा अनुभय (दोनोंरूप नहीं) रूप है ? क्या जुदी २ है, अथवा एकरूप है? क्या क्रम पूर्वक है, अथवा अक्रम पूर्वक है ? सत्त्वं स्वपरनिहत्यै सर्व किल मर्वथेरि पदपूर्व । , स्वपरोपकृतिनिमित्तं सर्व स्यात्स्यात्पदाङ्कितं तु पदम् ॥३३॥ उत्तर पू. १३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001681
Book TitlePanchadhyayi Purvardha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherGranthprakashan Karyalay Indore
Publication Year
Total Pages246
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size18 MB
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