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________________ <<] पञ्चाध्यायी । [ प्रथम ऐसी अवस्थामें वस्तु भी अपनी सत्ता नहीं रख सक्ती है । इसलिये अस्ति नास्तिरूप, अन्वय और व्यतिरेक दोनों ही वस्तुमें एक साथ मानना ठीक है । शङ्काकार- ननु का नो हानिः स्यादस्तु व्यतिरेक एव तद्वदपि । fararast arrsस्त व्यतिरेकोप्यस्ति चिदचिदिव ॥ २९३ ॥ यदि वा स्यान्मतं ते व्यतिरेके नान्वयः कदाप्यस्ति । न तथा पक्षच्युतिरिह व्यतिरेकोप्यन्वये यतो न स्यात् ॥ २९४॥ तस्मादिदमनवयं केवलमयमन्वयो यथास्ति तथा । व्यतिरेकोस्त्यविशेषादेकोत्त्या चैकशः समानतया ॥ २९५ ॥ दृष्टान्तोप्यस्ति घटो यथा तथा स्वस्वरूपतोस्ति पटः । न घटः पटेऽथ न पटो घटेपि भवतोऽध घटपटाविह हि ॥ २९६॥ न पटाभावो हि घटो न पटाभावे घटस्य निष्पत्तिः । न घटाभावो हि पटः पटसग वा घटव्ययादिति चेत् ॥ २९७॥ तत्किं व्यतिरेकस्याभावेन विनाऽन्वयोपि नास्तीति । अस्त्त्यन्वयः स्वरूपादिति वक्तुं शक्यते यतस्त्विति चेत् ॥ २९८ ॥ अर्थ - शङ्काकार कहता है कि यदि व्यतिरेकके अभाव में अन्वय भी नहीं बनता, तो व्यतिरेक भी उसी तरह मानो, इसमें हमारी कौनसी हानि है ? किन्तु इतना अवश्य मानना चाहिये कि अन्वय स्वतन्त्र है, और व्यतिरेक स्वतंत्र है । वे दोनों ऐसे ही स्वतन्त्र हैं जैसे कि जीव और अजीव । यदि कदाचित् तुम्हारा ऐसा सिद्धान्त हो कि व्यतिरेकमें अन्वय कभी नहीं रहता है तो भी हमारे पक्षका खण्डन नहीं होता है, क्योंकि जिस प्रकार व्यतिरेकमें अन्वय नहीं रहता है, उसी प्रकार अन्वयमें व्यतिरेक भी नहीं रहता है । इसलिये यह बात निर्दोष सिद्ध है कि जिस प्रकार केवल अन्वय है, उसी प्रकार व्यतिरेक भी है सामान्य दृष्टि से दोनों ही समान हैं । जैसे अन्वय कहा जाता है, वैसे ही व्यतिरेक भी कहा जाता है । दृष्टान्त भी इस विषय में घट पटका ले लीजिये । जिस प्रकार घट अपने स्वरूपको लिये हुए जुदा है, उसी प्रकार अपने स्वरूपको लिये हुए पट भी जुड़ा है। पटमें घट नहीं रहता है, और न घटमें पट ही रहता है, किन्तु घट और पट दोनों जुदे२ हैं। जिसप्रकार पटका अभाव घट नहीं है, और न पटके अभाव में घटकी उत्पत्ति ही होती है । उसी प्रकार पटभी घटका अभाव नहीं है, और न घटके अभावसे पटकी उत्पत्ति ही होती है । ऐसी अवस्थामें आपका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001681
Book TitlePanchadhyayi Purvardha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherGranthprakashan Karyalay Indore
Publication Year
Total Pages246
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size18 MB
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