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विषय । पृष्ठ। विषय ।
पृष्ठ। विधि निषेधमें सर्वथा नाम भेद भी द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिक ....
नहीं है. .... .... .... ८९ पर्यायार्थिक नय विचार .... .... जैन स्याहादीका खरूप........ ९१ व्यवहारनय .... .... .... सर्वथा नित्य अनित्य पक्षमें तथा व्यवहार नयके भेद .... ....
केवल निश्चयात्मक पक्षमें दोष ९२-९३ कछ नयाभासोंका उल्लेख .... १७१ तत् अतत् भावके कहनेकी प्रतिज्ञा ९५ नयबादके भेद.... .... .... अभिन्न प्रतीतिमें हेतु .... .... ९६ द्रव्यार्थिकनयका स्वरूप ..... १७९ विशेष .... .... .... .... ९ द्रव्यार्थिक नय भी विकल्पात्मक ह
१८० नित्य अनित्य दृष्टि .... ....
| निश्चयनयको सोदहरण मानने में दोष सत् और परिणाममें अनेक शंकायें
निश्चय नय यथार्थ है .... .... प्रत्येकका उत्तर.... .... .... १०५
व्यवहार नय मिथ्या है.... .... सत् परिणामको अनादि सिद्ध
वस्तुविचारार्थ व्यवहार नय भी मानने में दोष.... .... .... १२१
आवश्यक है.... .... .... १८८ सत्परिणाम कथंचित् भिन्न अभिन्न हैं
स्वात्मानुभूतिका स्वरूप.... .... उभयथा अविरुद्ध हैं .... .... १२४
प्रमाणका स्वरूप.... विक्रियाके, अभावमें दोष .... १२६
विरोधी धर्म भी एक साथ रह सकते हैं १९७ सत्को सर्वथा अनित्य माननेमें दोष
प्रमाण नयोंसे भिन्न है.... .... सर्वथा नित्य माननेमें दोष १२८
सकल प्रत्यक्षका स्वरूप.... .... सत् स्यात् एक है .... .... १२९
देशप्रत्यक्षका स्वरूप .... .... द्रव्य विचार .... .... .... १२९ क्षेत्र विचार ....
परोक्षका स्वरूप.... .... .... काल विचार .... ....
मतिश्रुत भी मुख्य प्रत्यक्षके समान
। प्रत्यक्ष हैं .... .... .... २०८ भाव विचार .... ....
द्रव्यमन.... .... .... .... २१० स्पष्ट विवेचन .... ....
भावमन.... ....
२१० द्रव्यक्षेत्रकालभावसे सत् अनेक
कोई वेदको ही प्रमाण मानते हैं २१२ भी है .... .... १४८-१४९
कोई प्रमाकरणको प्रमाण मानते हैं २१२ सर्वथा एक अनेक माननेमें दोष
ज्ञान ही प्रमाण है भयोंका स्वरूप .... ....
वेद भी प्रमाण नहीं है.... .... २१६ नयोंके भेद .... .... ....
निक्षेपोंका स्वरूप सष्ट विवेचन
.... .... २१९ नयमात्र विकल्पात्मक है .... १५३ द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिक नयोंका विषय २२३
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