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सूत्र ६ ।] सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् । कहना द्रव्यनिक्षेपका विषय है । अथवा भूत भविष्यत् पर्यायरूपसे वर्तमान वस्तुके व्यवहार करनेको द्रव्यनिक्षेप कहते हैं। जैसे कि राज्य छोड़ देनेवालेको भी राजा कहना, अथवा मुनीमीकी नौकरी छोड़ देनेवालेको भी मुनीमजी कहना या विद्यार्थीको पंडित कहना, इत्यादि ।
किसी भी वस्तुको वर्तमानकी पर्यायकी अपेक्षासे कहना भावनिक्षेप है। जैसे कि राज्य करते हुएको राजा कहना अथवा मनुष्य पर्याययुक्त जीवको मनुष्य कहना । इत्यादि ।
इन उपर्युक्त चार निक्षेपोंको यहाँपर जीव द्रव्यकी अपेक्षासे घटित करके बताया है। उसी प्रकार समस्त द्रव्यों और उनकी पर्यायों तथा सम्यग्दर्शन आदिकी अपेक्षासे भी घटित कर लेना चाहिये । विशेष बात यह ध्यानमें रखनी चाहिये, कि जो भंग जहां संभव न हो, उसको छोड़ देना चाहिये । जैसा कि यहाँपर जीवद्रव्यके द्रव्यनिक्षेपका भंग शून्यरूप बताया गया है। क्योंकि उसमेंसे जीवन गुणका कभी भी अभाव नहीं होता । द्रव्यनिक्षेपसे जीव उसको कह सकते हैं, कि जिसमें वर्तमानमें तो जीवन गुण न हो, परन्तु भूत अथवा भविष्यतमें वह गुण पाया जाय । सो यह बात असंभव है। क्योंकि यदि किसी वस्तुके गुणका कभी भी अभाव माना जायगा तो उस वस्तुका ही अभाव मानना पड़ेगा, और एक वस्तुके किसी भी गुणका दूसरी वस्तुमें यदि संक्रमण माना जायगा, तो सर्वसंकरता नामका दोष आकर उपस्थित होगा। . यहाँपर जीवद्रव्यके विषयमें द्रव्यनिक्षेपको जो शून्यरूप कहा है, वह जीवत्व-सामान्य जीवद्रव्यकी अपेक्षासे समझना चाहिये । जीव विशेषकी अपेक्षासे यह भंग भी घटित हो सकता है, यथा-कोई मनुष्य जीव मरकर देव होनेवाला है, क्योंकि उसने देव आयुका निकाचित बंध किया है, ऐसी अवस्थामें उस मनुष्य जीवको देवजीव कहना द्रव्यनिक्षेपका विषय है । जीवादिक पदार्थोंको जाननेके लिये और भी उपाय बतानेको सत्र कहते हैं:
सूत्र-प्रमाणनयैरधिगमः ॥ ६ ॥ भाष्यम्-एषां च जीवादीनां तत्त्वानां यथोद्दिष्टानां नामादिभिय॑स्तानां प्रमाणनयैर्विस्तराधिगमो भवति । तत्र प्रमाणं द्विविधं परोक्ष प्रत्यक्षं च वक्ष्यते । चतुर्विधमित्येके । नयवादान्तरेण । नयाश्च नैगमादयो वक्ष्यन्ते ।
किंचान्यत् ।
अर्थ-जिन जीव अजीव आदि तत्त्वोंका नामनिर्देश " जीवाजीवात्रव"-आदि सूत्रके द्वारा किया जा चुका है, और जिनका न्यास-निक्षेप " नामस्थापना "-आदि उपर्युक्त सूत्रके द्वारा किया गया है, उनका विस्तार पूर्वक अधिगम प्रमाण और नयके द्वारा हुआ करता है।
१-अतद्भाव वा-राजवार्तिक-अकलंकदेव । २-तत्कालपर्ययाक्रान्तं वस्तु भावोऽभियिते ॥
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