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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम
[दशमोऽध्यायः
विशुद्धिसूक्ष्मसम्पराययथाख्यातपश्चात्कृतसिद्धाःसामायिकच्छेदोपस्थाप्यपरिहारविशुद्धिसूक्ष्मसम्पराययथाख्यातपश्चात्कृतसिद्धाः॥ ____अर्थ-तीर्थ नामक अनुयोगके द्वारा मुक्तात्माओंमें भेदका वर्णन किया जासकता है। क्योंकि कोई तो तीर्थकरके तीर्थमें तीर्थकर होकर सिद्ध होते हैं, कोई तीर्थकरके तीर्थमें नोतीर्थकर-ईषत्तीर्थकर होकर सिद्ध हुआ करते हैं, तथा कोई तीर्थकरके तीर्थमें ही अतीर्थकर होकर भी सिद्ध हुआ करते हैं । एवं कोई तीर्थकरीके तीर्थमें सिद्ध होते हैं ।
भावार्थ-यह अनुयोगके द्वारा सिद्धोंकी विशेषताका आख्यान व्यपदेशमात्र कहा जा सकता है। क्योंकि इससे उनके स्वरूपमें कोई अन्तर सिद्ध नहीं होता । जैसा केवलज्ञान आदिक तीर्थकरसिद्धके होता है, वैसा ही नोतीर्थकरके और वैसा ही अतीर्थकरसिद्धके भी हुआ करता है। किसी भी सिद्धके गुणोंमें दूसरे सिद्धोंके उन्हीं गुणोंकी अपेक्षा विशेषता नहीं पाई जाती ।
चारित्र-प्रत्युत्पन्नभावप्रज्ञापनीयनयकी अपेक्षा नोचारित्री और नोभचारित्री दोनों ही सिद्धिको प्राप्त करनेवाले कहे जा सकते हैं। क्योंकि वर्तमान क्षणकी अपेक्षा सिद्धोंको न चारित्रसे सिद्ध कह सकते हैं और न अचारित्रसे सिद्ध ही कह सकते हैं। क्योंकि वह अवस्था चारित्र अचारित्र दोनोंसे रहित है। पूर्वभावप्रज्ञापनकी अपेक्षा चारित्रसे सिद्धि कहीं जा सकती है । किन्तु उसमें भी दो प्रकार हैं।-अनन्तरपश्चात्कृतिक और परम्परपश्चात्कृतिक । अनन्तरपश्चात्की अपेक्षा यथाख्यातसंयमको धारण करनेवाला ही मुक्तिको प्राप्त किया करता है । परम्परपश्चात् में भी दो अपेक्षाएं हैं-एक व्यञ्जित दूसरी अव्यञ्जित। अव्यञ्जितकी विवक्षा होनेपर तीन भेद कहे जा सकते हैं ।-त्रिचारित्रपश्चात्कृत और चतुश्चारित्रपश्चात्कृत तथा पंचचारित्रपश्चात्कृत । व्यञ्जितकी अपेक्षामें कोई तो सामायिक सूक्ष्मसम्पराय और यथाख्यातसंयमके द्वारा सिद्ध हुआ करते हैं । कोई छेदोपस्थाप्यसूक्ष्मसम्पराय और यथाख्यातसंयमके द्वारा सिद्ध हुआ करते हैं । कोई सामायिकसंयम छेदोपस्थाप्यसंयम और सूक्ष्मसंपरायसंयम और यथाख्यातसंयमके द्वारा सिद्ध हुआ करते हैं । कोई छेदोपस्थाप्यसंयम परिहारविशुद्धिसंयम सूक्ष्मसंपरायसंयम और यथाख्यातसंयमके द्वारा सिद्ध हुआ करते हैं । तथा कोई सामायिक छेदोपस्थाप्य परिहारविशुद्धि सूक्ष्मसंपराय और यथाख्यातसंयमके द्वारा सिद्ध हुआ करते हैं।
भावार्थ-इस प्रकार सिद्धजीवोंकी विशेषता चारित्रके द्वारा अनेक प्रकारसे बताई जा सकती है । यद्यपि वर्तमानमें वे चारित्र अचारित्रसे रहित हैं, तो भी पूर्वभावकी अपेक्षा त्रिचारित्रसिद्ध चतुःचारित्रसिद्ध पंचचारित्रसिद्ध आदि अनेक भेदरूप कहे जा सकते हैं।
भाष्यम्-प्रत्येकबुद्धबोधित:-अस्य व्याख्याविकल्पश्चतुर्विधः । तद्यथा ।-अस्ति स्वयंबुद्धसिद्धः। स द्विविधः अर्हश्च तीर्थकरः प्रत्येकबुद्धसिद्धश्च । बुद्धबोधितसिद्धाः त्रिचतुर्थो विकल्पः परबोधकसिद्धाः स्वेष्टकारिसिद्धाः ॥
१-दिगम्बर--सम्प्रदायमें स्त्रीका तीर्थंकर होना या मोक्ष जाना नहीं मामा है।
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