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सूत्र १० ।].
सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् ।
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ऐसी रेखाकी स्थिति ज्यादःसे ज्यादः आठ मास तककी कही जा सकती है, क्योंकि वर्षाऋतुके आनेपर वह नष्ट हो सकती है, और भूमि फिर ज्योंकी त्यों अपने स्वरूपमें आ जा सकती है। इसी प्रकार पूर्वोक्त निमित्तोंमें से किसी भी निमित्तको पाकर जिस जीवके ऐसा क्रोध उत्पन्न हुआ हो, जोकि स्थितिकी अपेक्षा अनेक स्थानवाला कहा जा सके, जो एक वर्ष दो वर्ष तीन वर्ष या चार वर्ष आदि कुछ वर्षों तक रहनेके योग्य हो, और जिसका प्रतीकार अतिकष्टसे किया जा सके, उसको भूमिराजिसदृश क्रोध कहते हैं। इस तरहके क्रोधपूर्वक मरणको प्राप्त हुए जीव मरकर तिर्यग्गतिको प्राप्त हुआ करते हैं।
बालुकाराजिसदृश क्रोधका आशय ऐसा है, कि बालुमें उत्पन्न हुई रेखाके समान जो कोध हो । जिस प्रकार लकड़ी आदि काठके प्रयोगसे अथवा किसी लोहेकी सलाई आदिके निमित्तसे यद्वा कंकड़ पत्थर आदिके संयोगसे इनमें से किसी भी निमित्तसे बालुमें जो रेखा हो जाय, तो वह केवल वायुके झकोरोंको पाकर या दूसरे किसी कारणसे नष्ट हो जाती है।
और फिर वह वालु ज्योंकी त्यों अपने पूर्वरूपमें आजाती है। यह कार्य एक महीनाके भीतर ही हो जाता है। इसी प्रकार जिस जीवके पूर्वोक्त निमित्तों से किसी भी निमित्तको पाकर उत्पन्न हुआ क्रोध ऐसा हो, जोकि दिनरात्रि' पक्ष महीना चार महीना या वर्ष दिनतक ठहरनेवाला हो, उसको बालुकारानिसदृश क्रोध समझना चाहिये। इस तरहके क्रोधपूर्वक जो मरणको प्राप्त हेते हैं, वे जीव मरकर मनुष्य-भवको प्राप्त हुआ करते हैं।
उदकरानिसदृश उसको कहते हैं, जोकि जलकी रेखाके समान हो। जिस प्रकार दण्डके द्वारा या लोहकी सलाई अथवा अङ्गलि आदिके द्वारा अर्थात् इनमेंसे किसी भी निमित्तके द्वारा यदि जलमें रेखा उत्पन्न हो जाय, तो उसके विलीन होनेमें कुछ भी देर नहीं लगती । क्योंकि जलका स्वभाव द्रवरूप है बहनेवाला है, अतएव उसमें रेखाके उत्पन्न होते ही वह स्वभावसे ही अनन्तर क्षणमें ही रेखा नष्ट हो जाती है, और जल ज्योंका त्यों हो जाता है । इसी प्रकार पूर्वोक्त निमित्तों से किसी भी निमित्तको पाकर विद्वान्-विचारशील और अप्रमत्त जिस जीवके उत्पन्न हुआ क्रोध ऐसा हो, जो कि उत्पन्न होनेके अनन्तर ही नष्ट हो जाय या क्षमा के द्वारा विलीन-शान्त हो जाय, उसको जलकी रेखाके समान समझना चाहिये । इस प्रकारके क्रोधपूर्वक मरणको प्राप्त हुए जीव देवगतिमें जन्म-धारण किया करते हैं।
____ इस प्रकार क्रोधके चार प्रकारका स्वरूप और फलं बताया। किंतु जो जीव इनमेंसे किसी भी तरहके क्रोधसे युक्त नहीं हैं-जिनका क्रोध कषाय सर्वथा नष्ट हो चुका है, वे जीव नियमसे निर्वाणपद-मोक्षको ही प्राप्त हुआ करते हैं।
१-२४ घंटा । अंतोमुहुत्त पक्खं छम्माम संखऽसंखणंतभवं । संजलणमादियाणं वासणकालो दु णियमेण ॥४६॥ गोम्मटसार क० २-सिलपुढविभेदधुलीजलराइसमाणओ हवे कोहो । णारयतिरियणरामरगईसु उप्पायओ कमसो॥ २८३॥ गो० जी०
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