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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम्
[ सप्तमोऽध्यायः
भाष्यम्-अत्राह-अथ स्तेयं किमिति। अत्रोच्यते।
अर्थ--क्रमानुसार चोरीका लक्षण बताना चाहिये, अतएव प्रश्न उपस्थित होता है, कि स्तेय किसको कहते हैं ? इसके उत्तरमें सूत्र कहते हैं।--
सूत्र-अदत्तादानं स्तेयम् ॥१०॥ भाष्यम्-स्तेयबुद्ध्या परैरदत्तस्य परिगृहीतस्य तृणादेव्यजातस्यादानं स्तेयम् ॥
अर्थ--स्तेय बद्धिसे-चोरी करनेके अभिप्रायसे जिनका वह द्रव्य है, उनके विना दिये ही-उन की विना मंजूरीके तृण आदि कुछ भी वस्तु क्यों न हो, उसका परिग्रहण करलेनाउसको अपना लेना, अथवा ले लेना इसको चोरी कहते हैं।
भावार्थ-इस सत्रमें भी प्रमत्तयोगका सम्बन्ध है। अतएव प्रमादपूर्वक यदि किसीकी अदत्त वस्तुको ग्रहण करे, तो वह चोरी है। अन्यथा राजमार्गपर चलनेसे अथवा नदी झरना आदिका जल और मिट्टी भस्म आदिके ग्रहण करलेनेपर महान् मुनियों को भी चोरीके दोषका प्रसङ्ग आवेगा।
भाष्यम्-अत्राह-अथाब्रह्म किमिति ? अत्रोच्यते ।
अर्थ-प्रश्न-स्तेयके अनन्तर अब्रह्म-कुशीलका ग्रहण किया है । अतएव क्रमानुसार स्तेयके बाद उसका भी लक्षण बताना चाहिये, कि अब्रह्म कहते किसको हैं ? इसका उत्तर सूत्र द्वारा देते हैं:
सूत्र-मैथुनमब्रह्म ॥ ११ ॥ भाष्यम्-स्त्रीपुंसयोमिथुनभावो मिथुनकर्म वा मैथुनं तदब्रह्म ॥
अर्थ-स्त्री और पुरुष दोनोंके मिथुन-भाव अथवा मिथुन-कर्मको मैथुन कहते हैं, उसीका नाम अब्रह्म है।
भावार्थ-मिथुन नाम युगलका है। प्रकृतमें स्त्री पुरुषका ही युगल लिया गया है, अथवा लेना चाहिये । दोनोंका परस्परमें संयोग या संभोगके लिये जो भाव विशेष होता है, अथवा दोनों मिलकर जो संभोग क्रिया करते हैं, उसको मैथुन कहते हैं, और मैथुन ही अब्रह्म है। इस सूत्रमें भी प्रमत्तयोगका सम्बन्ध है। अतएव उस अभिप्रायसे जो भी क्रिया की जायगी, फिर चाहे वह परस्परमें दो पुरुष या दो स्त्री मिल कर ही क्यों न करें, अथवा अनङ्गक्रीड़ा आदि ही क्यों न हो, वह सब अब्रह्म ही है, और जो प्रमादको छोड़ कर क्रिया होती है, उसको मैथुन नहीं कहते। जैसे कि पिता भाई आदि लडकी बहिन आदिको गोदीमें लेते हैं, प्यार करते हैं, तो भी वह अब्रह्म नहीं कहा जाता । क्योंकि वहाँपर प्रमत्तयोग नहीं है।
भाष्यम्-अत्राह-अथ परिग्रहः क इति ? अत्रोच्यते
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