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रायचन्द्र जैनशास्त्रमालायाम्
[ षष्ठोऽध्यायः
एव उन कर्मोंका कारण - आस्रव भी दो प्रकारका है, और वह अपने अपने कार्यका कारण हुआ करता है। हिंसा आदि पापोंसे रहित प्रवृत्ति, सत्यवचन और शुभमनोयोग से पुण्य कर्मोका बन्ध होता है । सातावेदनीय, नरकके सिवाय ३ आयु, उच्चगोत्र और शुभ नामकर्म - मनुष्यगति देवगति पंचेन्द्रिय जाति आदि ३७, इस तरह कुल मिलाकर ४२ पुण्य प्रकृतियाँ हैं । शेष सम्पूर्ण कर्म पाप हैं, जैसा कि आगे चलकर बतावेंगे ।
क्रमानुसार दूसरे अशुभयोगका स्वरूप बताते हैं-
सूत्र - अशुभः पापस्य ॥ ४ ॥
भाष्यम् - तत्र सद्वेद्यादि पुण्यं वक्ष्यते । शेषं पापमिति ॥
अर्थ - अशुभ योग पापका आस्रव है । ऊपर जो तीन प्रकारके हिंसा प्रवृत्ति प्रभृति अशुभ काययोग आदि गिनाये हैं, उनसे पाप कर्मका आस्रव होता है । इस विषयमें यह बात समझ लेनी चाहिये, कि आगे चलकर अध्याय ८ सूत्र ३६ के द्वारा सातावेदनीयादि . कर्मों को गिनावेंगे उनसे जो बाकी बचें, वे सत्र ज्ञानावरणादि पाप हैं ।
पुण्य
योग शुभ और अशुभ ये दो भेद स्वरूपभेदकी अपेक्षासे हैं । किन्तु स्वामिभेद की अपेक्षासे भी उसके भेद होते हैं । उन्हीं को बताने के लिये आगेका सूत्र कहते हैं:सूत्र - सकषायाकषाययोः साम्परायिकेर्यापथयोः ॥ ५ ॥
भाष्यम् - स एव त्रिविधोऽपि योगः सकषायाकषाययोः साम्परायिकेर्यापथयोरास्त्रवोभवति यथाङ्ख्यं यथासम्भवं च । सकषायस्य योगः साम्यरायिकस्य अकषायस्येयपथस्यैवैकसमयस्थितेः ॥
अर्थ - पूर्वोक्त तीनों ही प्रकारका योग सकषाय और अकषाय दो प्रकारके जीवोंके हुआ करता है, वह यथाक्रमसे तथा यथासंभव सकषाय जीवके सांपैरायिककर्मका आस्रव कहा जाता है, और अकषाय जीवके ईर्यापथकर्मका आस्रव कहा जाता है । इनमें से सकषाय जीवका योग जो सांपरायिककर्मका आस्रव होता है, उसकी स्थिति अनियत है । परन्तु अकषाय जीवके जो ईर्थ्यापथकर्मका आस्रव होता है, उसकी स्थिति एक समयकी ही होती है ।
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भावार्थ - युगपत् कर्मोंका चार प्रकारका बंध हुआ करता है - प्रकृति स्थिति अनुभाग और प्रदेश । इनमें से प्रकृतिबंध और प्रदेशबंधका कारण योग है, और स्थितिबंध तथा अनुभागबंधका कारण कषय है । जो सकषाय जीव हैं, उनका योग भी कषाययुक्त ही रहा करता है, अतएव उसके द्वारा जो कर्म आते हैं, उनकी स्थिति एक समय से बहुत अधिक
१ - " समंततः पराभूतिः संपरायः पराभवः । जीवस्य कर्मभिः प्रोक्तस्तदर्थं सांपरायिकम् ॥ ( तत्त्वार्थश्लोकवार्त्तिक) २ – इनका स्वरूप आगे चलकर आठवें अध्यायमें बताया जायगा । ३ – “ जोगा पयडिपदेसा ठिदिअणुभागा कसायदो होति " ( द्रव्यसंग्रह ) ।
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