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रायचन्द्र जैनशास्त्रमालायाम्
सूत्र - कालश्चेत्येके ॥ ३८ ॥
भाष्यम् - एके त्वाचार्या व्याचक्षते - कालोऽपि द्रव्यमिति ॥ अर्थ – कोई कोई आचार्य कहते हैं कि - काल भी द्रव्य है ।
भावार्थ – पहले वर्तना आदि उपकार जो बताया है, वह किसी उपकारकके विना नहीं कहा जा सकता या हो सकता । इसी प्रकार समय घड़ी घंटा आदि जो व्यवहार है, वह भी किसी उपादान कारणके बिना नहीं हो सकता, तथा पदार्थों के परिणमनमें क्रमवर्तित्वका कोई कारण भी होना चाहिये, और आगममें छह द्रव्योंका उल्लेख भी है । इत्यादि कारणोंसे ही कुछ आचार्योंका कहना है, कि काल भी एक द्रव्य है ।
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इसका विशेष स्वरूप बतानेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं:सूत्र - सोऽनन्तसमयः ॥ ३९ ॥
भाष्यम् - स चैष कालोऽनन्तसमयः । तत्रैक एव वर्तमानसमयः । अतीतानागतसो
[ पंचमोऽध्यायः
स्त्वानन्त्यम् ॥
I
अर्थ — ऊपर जिस कालद्रव्यका उल्लेख किया है, वह अनन्त समयरूप है । जिनमें से वर्तमान समय तो एक ही है, परन्तु भूत और भविष्यत् समयोंका प्रमाण अनन्त है ।
भावार्थ - अनन्त हैं, समय अर्थात पर्याय या भेद जिसके उसको अनन्त पर्याय कहते हैं । उपर्युक्त काल द्रव्य, जोकि उपचरित नहीं, किन्तु पारमार्थिक है, अनन्त परम निरुद्ध पर्यायोंवाला है। इसी लिये उसमें उक्त द्रव्यका लक्षण " गुणपर्यायवत् " यह अच्छी तरह घटित होता है । उसमें सत्त्व ज्ञेयत्व द्रव्यत्व कालत्व आदि अनन्त अर्थपर्याय और वचनपर्याय पाये जाते हैं । और भूत भविष्यत् वर्तमान शब्द के द्वारा कहे जानेवाले वर्तना आदि परिणामविशेष भी पाये जाते हैं ।
अनन्त शब्द संख्यावाची है, और समय शब्द परिणमनको दिखाता है । अतएव काल द्रव्य अनन्त परिणामी है, ऐसा समझना चाहिये । किन्तु वर्तमान परिणमन या समय एक ही कहा जा सकता है, और भूत भविष्यत् के अनन्त कहे जा सकते हैं । भूत समय अनादि सान्त हैं, और भविष्यत् समय साद्यनन्त हैं । यद्यपि अनन्तत्व दोनोंमें समान है, फिर भी अल्प बहुत्वकी अपेक्षा दोनोंमें अन्तर है । क्योंकि आगममें वह इस प्रकार बताया है, कि अभव्यों से अनन्तगुणी सिद्ध राशि है, सिद्धों असंख्यातगुणा भृतसमयोंकी राशिका प्रमाण है । भूतसमयोंकी राशिके प्रमाणसे अनन्तगुणी भव्यराशि है, और भव्यराशिसे अनन्तगुणा भविष्यत् समयोंकी राशिका प्रमाण है । यह अनन्तता सन्ततिकी अपेक्षा से है, और यह वर्तमान में नहीं पाई जा सकती, इसलिये वर्तमान समय एक ही है ।
१ – “ कति णं भंते ! दव्वा पण्णत्ता ? गोयमा ! छ दव्वा पणत्ता, तं जहा -- धम्मस्थिकाए, अधम्मत्थिकाए, आगासत्थिकाए, पुग्गलत्थिकाए, जीवत्थिकाए, अद्धासमए " । इत्यादि ।
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