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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम्
सूत्र - नक्षत्राणामर्धम् ॥ ५० ॥
भाष्यम्--नक्षत्राणां देवानां पल्योपमार्धं परा स्थितिर्भवति ॥
अर्थ — अश्विनी भरणी आदि नक्षत्र जातिके ज्योतिष्क देवोंकी उत्कृष्ट स्थिति आधा
-
पल्य प्रमाण है ।
[ चतुर्थोऽध्यायः
सूत्र - - - तारकाणां चतुर्भागः ॥ ५१ ॥
भाष्यम् - तारकाणां च पत्योपमचतुर्भागः परा स्थितिर्भवति ॥
अर्थ —प्रकीर्णक ताराओंकी उत्कृष्ट स्थितिका प्रमाण एक पल्यका चतुर्थ भाग है । ताराओंकी जघन्य स्थिति बताते हैं :
सूत्र -- जघन्या त्वष्टभागः ।। ५२ ।।
भाष्यम् - तारकाणां तु जघन्या स्थितिः पल्योपमाष्टभागः ॥
अर्थ -- ताराओंकी जघन्य स्थितिका प्रमाण एक पल्यका आठवाँ भाग मात्र है ।
सूत्र - चर्तुभागः शेषाणाम् ॥ ५३ ॥
भाष्यम् - तारकाभ्यः शेषाणां ज्योतिष्काणां चतुर्भागः पल्योपमस्यापरा स्थितिरिति ॥ इति श्रीतत्त्वार्थसंग्रहे अर्हत्प्रवचने देवगतिप्रदर्शनो नाम चतुर्थोऽध्यायः । अर्थ — ताराओंसे शेष जो ज्योतिष्क देव हैं, उनकी अपरा - जघन्या स्थिति पल्यका एक चतुर्थ भाग है |
इस प्रकार तत्त्वार्थाधिगम भाष्य में देवगतिका जिसमें वर्णन किया गया है। ऐसा चतुर्थ अध्याय समाप्त हुआ ।
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