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________________ २४४ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् सूत्र - नक्षत्राणामर्धम् ॥ ५० ॥ भाष्यम्--नक्षत्राणां देवानां पल्योपमार्धं परा स्थितिर्भवति ॥ अर्थ — अश्विनी भरणी आदि नक्षत्र जातिके ज्योतिष्क देवोंकी उत्कृष्ट स्थिति आधा - पल्य प्रमाण है । [ चतुर्थोऽध्यायः सूत्र - - - तारकाणां चतुर्भागः ॥ ५१ ॥ भाष्यम् - तारकाणां च पत्योपमचतुर्भागः परा स्थितिर्भवति ॥ अर्थ —प्रकीर्णक ताराओंकी उत्कृष्ट स्थितिका प्रमाण एक पल्यका चतुर्थ भाग है । ताराओंकी जघन्य स्थिति बताते हैं : सूत्र -- जघन्या त्वष्टभागः ।। ५२ ।। भाष्यम् - तारकाणां तु जघन्या स्थितिः पल्योपमाष्टभागः ॥ अर्थ -- ताराओंकी जघन्य स्थितिका प्रमाण एक पल्यका आठवाँ भाग मात्र है । सूत्र - चर्तुभागः शेषाणाम् ॥ ५३ ॥ भाष्यम् - तारकाभ्यः शेषाणां ज्योतिष्काणां चतुर्भागः पल्योपमस्यापरा स्थितिरिति ॥ इति श्रीतत्त्वार्थसंग्रहे अर्हत्प्रवचने देवगतिप्रदर्शनो नाम चतुर्थोऽध्यायः । अर्थ — ताराओंसे शेष जो ज्योतिष्क देव हैं, उनकी अपरा - जघन्या स्थिति पल्यका एक चतुर्थ भाग है | इस प्रकार तत्त्वार्थाधिगम भाष्य में देवगतिका जिसमें वर्णन किया गया है। ऐसा चतुर्थ अध्याय समाप्त हुआ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001680
Book TitleSabhasyatattvarthadhigamsutra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorKhubchand Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1932
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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