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________________ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् [ तृतीयोऽध्यायः इस सूत्रमें जिनका निर्देश किया गया है, वे द्वीप और समुद्र किस प्रकारसे अवस्थित हैं, और उनका प्रमाण कितना कितना है, इस बातको बतानेके लिये सूत्र कहते हैं।सूत्रम्-दिर्दिविष्कम्भाःपूर्वपूर्वपरिक्षेपिणो वलयाकृतयः॥८॥ भाष्यम्--सर्वे चैते द्वीपसमुद्रा यथाक्रममादितो द्विद्धिर्विष्कम्भाः पूर्वपूर्वपरिक्षेपिणो वलयाकृतयः प्रत्येतव्याः। तद्यथा ___ अर्थ-उपर्युक्त सभी द्वीप और समुद्रोंका विष्कम्भ-चौडाईका प्रमाण प्रथमसे लेकर अन्त तक जम्बूद्वीपसे स्वयम्भूरमण पर्यन्त दूना दूना समझना चाहिये । और ये सभी-द्वीप अथवा समुद्र अपने अपनेसे पहले द्वीप या समुद्रको घेरे हुए हैं। जैसे कि जम्बूद्वीपको लवणसमुद्र और लवणसमुद्रको धातकीखंडद्वीप तथा धातकीखण्डद्वीपको कालोदसमुद्र और कालोदसमुद्रको पुष्करवरद्वीप घेरे हुए हैं। इसी तरह अंत तक समझ लेना चाहिये । अतएव इनका आकार कंकणके समान गोल है। दूना दूना प्रमाण जो बताया है, वह तबतक समझमें नहीं आ सकता, जबतक कि पहले द्वीपका प्रमाण मालूम न हो जाय । अतएव उसको बताते हुए उनके सन्निवेशको भी स्फुट करते हैं भाष्यम्-योजनशतसहस्त्रं विष्कम्भो जम्बूद्वीपस्य वक्ष्यते । तद्विगुणो लवणजलस. मुद्रस्य । लवणजलसमुद्रविष्कम्भाद्विगुणो धातकीखण्डद्वीपस्य । इत्येवमास्वयम्भूरमणसमुद्रादिति ॥ पूर्वपूर्वपरिक्षेपिणः-सर्वे पूर्वपूर्वपरिक्षपिणः प्रत्येतव्याः । जम्बूद्वीपो लवणसमुद्रेण परिक्षिप्तः, लवणजलसमुद्रो धातकीखण्डेन परिक्षिप्तः, धातकीखण्ड द्वीपः कालोदसमुद्रेण परिक्षिप्तः, कालोदसमुद्रः पुष्करवरद्वीपार्धन परिक्षिप्तः, पुष्करद्वीपार्ध मानुषोत्तरेण पर्वतेन परिक्षप्तम्, पुष्करवरद्वीपः पुष्करवरोदेन समुद्रेण परिक्षिप्तः, एवमास्वयम्भूरमणात्समुद्रादिति ॥ वलयाकृतयः।-सर्वे च ते वलयाकृतयः सह मानुषोत्तरेणेति ॥ अर्थ-पहला द्वीप जम्बूद्वीप है, उसका विष्कम्भ-विस्तार एक लाख योजनका है, ऐसा आगे चलकर सूत्र द्वारा बतायेंगे । इससे दूना विस्तार लवणोदसमुद्रका है। लवणोदसमुद्रके विस्तारसे ना विस्तार धातकी खण्ड द्वीपका है । इसी तरह स्वयम्भूरमणसमुद्र पर्यन्त द्वीपसे समुद्रका और समुद्रसे द्वीपका विस्तार दूना दूना समझना चाहिये । अपनेसे पहले द्वीप या समुद्रका जितना विस्तार हो, उससे दूना अगले द्वीप या समुद्रका विस्तार समझ लेना चाहिये । पूर्वपूर्वका परिक्षेपण-ये सभी द्वीप और समुद्र पूर्वपूर्व परिक्षेपी हैं । द्वीपने अपनेसे पहले समुद्रको और समुद्रने अपनेसे पहले द्वीपको चारों तरफसे घेर रक्खा है। जैसे कि जम्बूद्वीप लवगसमुद्रसे घिरा हुआ है, और लवणसमुद्र धातकीखण्ड द्वीपसे घिरा हुआ है, धातकी ..१योजनशतसहस्रविष्कम्भो इत्यपि पाठान्तरम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001680
Book TitleSabhasyatattvarthadhigamsutra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorKhubchand Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1932
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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