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रायचन्द्र जैनशास्त्रमालायाम्
[ तृतीयोऽध्यायः
प्रतिष्ठित वात १ वातप्रतिष्ठित उदधि २ उदधिप्रतिष्ठित पृथिवी ३ पृथिवी प्रतिष्ठित सस्थावर प्राण ४ जीवप्रतिष्ठित अजीव ५ कर्मप्रतिष्ठित जीव ६ जीवसंग्रहीत अजीव ७ कर्मसंग्रहीत जीव ८।
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इन सातों पृथिवियों का संनिवेश कोई तिरछा आदि न समझ ले, इसके लिये अधोऽधः शब्द दिया है। तथा सात पृथिवी बतानेका अभिप्राय यह है, कि अधोलोक में सात ही पृथिवियाँ हैं, सम्पूर्ण लोकमें सात ही हैं, ऐसा अभिप्राय नहीं है । क्योंकि ईषत् प्राग्भार नामकी आठवीं पृथिवी भी मानी है । इसी अभिप्रायको स्पष्ट करनेके लिये भाष्यकार कहते हैं
भाष्यम् - सप्तग्रहणं नियमार्थ रत्नप्रभाद्या माभूवन्नेकशो ह्यनियतसंख्या इति । किंचान्यत्-अधः सप्तैवेत्यवधार्यते, ऊर्ध्वत्वे कैवेति वक्ष्यते । अपि च तन्त्रान्तरीया असंख्येयेषु लोक धातुष्व संख्येयाः पृथिवीप्रस्तारा इत्यध्यवसिताः । तत्प्रतिषेधार्थं च सप्तग्रहणामिति ।
सर्वाश्चैता अधोऽधः पृथुतराः छत्रातिच्छत्रसंस्थिताः । धर्मावंशा शैलाञ्जनारिष्ट । माघक्यामाधवीति चासां नामधेयानि यथासंख्यमेवं भवन्ति । रत्नप्रभा घनभावेनाशीतं योजनशतसहस्रं शेषा द्वात्रिंशदष्टाविंशतिविंशत्यष्टादशषोडशाष्टाधिकमिति । सर्वे घनोदधयो विंशतियोजन सहस्राणि । घनवाततनुवातास्त्वसंख्येयानि अधोऽधस्तु घनतराविशेषेणेति ॥
अर्थ -- सूत्र में सप्त शब्दका जो ग्रहण किया है, वह नियमार्थक है, जिससे रत्नप्रभा आदिक प्रत्येक पृथिवी अनियत संख्यावाली मालूम न हो, क्योंकि पहली पृथिवीके तीन काण्डक हैं, और उनमें भी पहला काण्डक सोलह प्रकारका है, इन सभी भेदों को एक एक पृथिवी समझनेसे पृथिवियोंकी कोई नियत संख्या मालूम नहीं हो सकती । इसके सिवाय एक बात यह भी है, कि इस शब्द से यह अवधारण- नियम किया जाता है, कि अधोलोक में पृथिवियाँ सात ही है । ऊर्ध्वलोक में एक ही पृथिवी है, ऐसा आगे चलकर कहेंगे, और एक बात यह भी है, कि जो जिनेन्द्र भगवान् के प्रवचनके बाह्य हैं - मिथ्या आगमके माननेवाले हैं, उनका कहना है कि " लोक धातु असंख्यात हैं, और उनमें पृथिवियोंका प्रस्तार भी असंख्यात प्रमाण है "" इस मिथ्या आग - मका प्रतिषेध करनेके लिये ही सप्त शब्दका ग्रहण किया है ।
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ये सभी पृथिवियाँ नीचे नीचे की तरफ उत्तरोत्तर अधिकाधिक विस्तृत हैं । जो रत्नप्रभाका विष्कम्भ और आयाम है, उसकी अपेक्षा शर्कराप्रभाका विष्कम्भ और आयाम अधिक है । इसी तरह बालुकाप्रभा आदिके विषय में समझना चाहिये । इन सातों पृथिवियों का आकार छत्राति
१ – यह पृथिवी सम्पूर्ण कल्पविभागों के ऊपर है, और ढाई द्वीपकी बराबर लम्बी चौड़ी है, इसका आकार उत्तान छत्रके समान है । इसका विशेष वर्णन आगे चलकर " तन्वी मनोज्ञा सुरभिः पुण्या परमभासुरा" इत्यादि कारिकाओंके द्वारा किया जायगा । २ - " तदागमश्चायं - " यथा हि वर्षति देवे प्रततधारं नास्ति वीचिका वा अन्तरिका वा एवमेव पूर्वायां दिशि लोकधातवो नैरन्तर्येण व्यवस्थितास्तथाऽन्यास्वपि दिविति " । ३ – विष्कम्भ और आयामकी अपेक्षा रत्नप्रभा एक रज्जुप्रमाण, शर्कराप्रभा ढाई रज्जुप्रमाण, बालुकाप्रभा चार रज्जुप्रमाण, पंकप्रभा पाँच रज्जुप्रमाण, धूमप्रभा छह रज्जुप्रमाण, तमःप्रभा साढ़े छह रज्जुप्रमाण, और महातमः प्रभा सात रज्जुप्रमाण है।
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