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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम्
[ तृतीयोऽध्यायः
सूत्र-रत्नशर्करावालुकापंकधूमतमोमहातमःप्रभाभूमयो घनाम्बुवाताकाशप्रतिष्ठाः सप्ताधोऽधः पृथुतराः ॥१॥
भाष्यम्-रत्नप्रभा शर्कराप्रभा वालुकाप्रभा पङ्कप्रभा धूमप्रभा तमःप्रभा महातम प्रभा इत्येता भूमयो घनाम्बुवाताकाशप्रतिष्ठा भवन्त्येकैकशः सप्त अधोऽधः । रत्नप्रभाया अधः शर्कराप्रभा, शर्कराप्रभाया अधो वालुकाप्रभा, इत्येवं शेषाः । अम्बुवाताकाशप्रतिष्ठा इति सिद्ध घनग्रहणं क्रियते यथा प्रतीयते घनमेवाम्बु अधः पृथिव्याः। वातास्तुघनास्तनवश्चेति । तदेवं खरपृथिवी पङ्कप्रतिष्ठा, पङ्को घनोदधिवलयप्रतिष्ठो घनोदधिवलयं घनवातवलयप्रतिष्ठं घनवातवलयं तनुवातवलयप्रतिष्ठं ततो महातमोभूतमाकाशम् । सर्व चैतत्पृथिव्यादि तनुवात. वलयान्तमाकाशप्रतिष्ठम् । आकाशं त्वात्मप्रतिष्ठं । उक्तमवगाहनमाकाशस्योति । तदनेन क्रमेण लोकानुभावसंनिविष्टा असंख्येययोजनकोटीकोट्यो विस्तृताः सप्तभूमयो रत्नप्रभाद्याः॥
__अर्थ-रत्नप्रभा शर्कराप्रभा वालुकाप्रभा पंकप्रभा धूमप्रभा तमःप्रभा और महातमःप्रभा ये सात अधोलोककी भूमियाँ हैं, और ये सात ही हैं न कि कम ज्यादह, तथा इनका प्रतिष्ठान एकके नीचे दूसरीका और दूसरीके नीचे तीसरीका इस क्रमसे है। प्रत्येक पृथिवी तीन तीन वातवलयोंके आधारपर ठहरी हुई है-घनोदधिवलय घनवातवलय और तनुवातवलय । ये वातवलय आकाशके आधारपर हैं, और आकाश आत्मप्रतिष्ठ है-अपने ही आधारपर है । क्योंकि वह अनंत है, परन्तु प्रत्येक पृथिवीके नीचे अन्तरालमें जो आकाश है वह अनन्त नहीं है, असंख्यात कोटीकोटी योजन प्रमाण है । रत्नप्रभाके नीचे और शर्कराप्रभाके ऊपर इसी तरह बालुकाप्रभाके ऊपर और शर्कराप्रभाके नीचे असंख्येय कोटीकोटी योजनप्रमाण आकाश है। इसी प्रकार सातों पृथिवियोंके नीचे समझना चाहिये । लोकके अन्तमें और बातवलयोंके भी अनन्तर जो आकाश है वह अनन्त है।
प्रश्न-इस सूत्रमें घन शब्दके ग्रहण करनेकी क्या आवश्यकता है ? क्योंकि अम्बु वाताकाशप्रतिष्ठाः इतना कहनेसे ही कार्य सिद्ध हो सकता है । उत्तर-ठीक है, परन्त घन शब्दके ग्रहण करनेका एक खास प्रयोजन है । वह यह कि अम्बु शब्दका अर्थ जल है, सो केवल अम्बु शब्द रहनेसे कोई यह समझ सकता है, कि प्रत्येक पृथिवीके नीचे जो जल है, वह द्रवरूप है। किंतु यह बात नहीं है । अतएव प्रत्येक पृथिवीके नीचे जो जल है, वह धनरूप ही है, ऐसा समझानेके लिये ही घनशब्दका ग्रहण किया गया है । सूत्रमें वात शब्दका प्रयोग जो किया है, उससे घनवात और तनुवात दोनों ही समझने चाहिये । इस प्रकार पहली पृथ्वीका खरभाग पंकभागके ऊपर और पंकभाग घनोदधिवलयके ऊपर तथा घनोदधिवलय घनवातवलयके ऊपर एवं धनवातवलय तनुवातवलयके ऊपर प्रतिष्ठित है । इसके अनंतर महातमोभूत आकाश है। ये पृथिवीसे लेकर तनुवातवलय पर्यंत सभी उस आकाशपर
1-पृथिवियोंके नीचे वातवलग और उनके नीचे आकाश है ।
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