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जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/61
कर्म का क्षय करता है और नवीनकों का आसव रोकता है इत्यादि। रत्नमालागत-श्रावकाचार
इस कृति के रचयिता आ. शिवकोटि है। किन्तु ये शिवकोटी भगवती आराधना के शिवार्य से भिन्न प्रतीत होते हैं। यह कृति संस्कृत पद्य में निबद्ध है। इसमें कुल ६७ श्लोक हैं। इसका रचनाकाल वि.सं. की दूसरी शती बताया गया है, किन्तु यह भी विवादास्पद है इसमें वर्णित विषयों के आधार पर यह परवर्तीकाल की किसी शिवकोटि के रचना प्रतीत होती है।
प्रस्तुत ग्रन्थ में रत्नत्रय धर्म की महत्ता बतलाते हुए भी श्रावकधर्म का ही प्रमुखता से वर्णन किया गया है। अन्य श्रावकाचार सम्बन्धी कृतियों के समान ही इसमें श्रावकाचार का विधान कहा गया है। मुख्यतया अष्टमी आदि पर्यों में सिद्धभक्ति आदि करने का, त्रिकाल वन्दना करने का एवं शास्त्रोक्त अन्य भी क्रियाओं के करने का विधान बताया गया है। इसके साथ ही इसमें यह भी निर्देश दिया है कि व्रतों में अतिचार लगने पर गुरु प्रतिपादित प्रायश्चित्त लेना चाहिये। इसके अतिरिक्त चैत्य और चैत्यालय बनवाने का, मुनिजनों की वैयावृत्य करने का तथा सिद्धांत ग्रन्थ एवं आचारशास्त्र को पढ़ने वालों में धन व्यय करने का विधान बताया गया है। रत्नकरण्डक-श्रावकाचार
इस ग्रन्थ के कर्ता श्री समन्तभद्रस्वामी है।' इसे 'उपासकाध्ययन' भी कहते हैं। यह रचना संस्कृत भाषा के १५० पद्यों में निबद्ध है। यह कृति आँठ परिच्छेदों में विभक्त है। कहीं सात परिच्छेदों का भी उल्लेख मिलता है। इस ग्रन्थ पर प्रभाचन्द्र की जो टीका है उसमें समग्र कृति को पाँच परिच्छेदों में विभक्त किया गया है। इसका रचनाकाल लगभग वि.सं. की चौथी शती हैं। यहाँ ज्ञातव्य हैं कि श्रावकधर्म का निरूपण करने वाले अनेक ग्रन्थों में प्रस्तुत ग्रन्थ सर्वाधिक प्राचीन एवं सर्वमान्य ग्रन्थराज है। दिगम्बराचार्यों के द्वारा श्रावकधर्म का निरूपण करने सम्बन्धी जो भी ग्रन्थ रचे गये हैं उनके नाम प्रायः श्रावकाचार नाम ही पाया जाता है जैसे- रत्नकरण्डकश्रावकाचार, अमितगतिश्रावकाचार, वसुनन्दिश्रावकाचार, धर्मसंग्रह- श्रावकाचार, प्रश्नोत्तरश्रावकाचार आदि।
' यह ग्रन्थ हिन्दी अनुवाद के साथ 'पं. सदासुख ग्रन्थमाला, श्री वीतराग विज्ञान-स्वाध्यायमंदिर ट्रस्ट, वीतराग विज्ञान भवन, पुरानी मण्डी, अजमेर' से सन् १६६७ में प्रकाशित हुआ है। यह द्वि. आ. है। इस कृति के सटीका और हिन्दी-गुजराती अनुवाद के साथ अन्य संस्करण भी निकले हैं।
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