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जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/59
यहाँ उल्लेखनीय हैं कि व्रतों का धारण करना दीक्षा है। इन व्रतों का धारण अणुव्रत और महाव्रत दो प्रकार से होता है। व्रत-धारण करने के अभिमुख पुरूष की क्रियाओं को दीक्षान्वयी क्रिया कहा है।
इसमें गर्भाधानादि क्रियाओं के पूर्व करने योग्य आवश्यक कार्यों का भी निर्देश दिया है इसके साथ ही उपर्युक्त तीनों प्रकार की क्रियाओं के समय बोले जाने वाले पीठिका मंत्र और विधानादि भी विवेचित हैं। इन मन्त्रों में गर्भाधान-मंत्र, धृतिक्रिया-मंत्र, मोदक्रिया-मंत्र, प्रियोदभव-मंत्र, बहिर्यान-मंत्र, अन्नप्राशनक्रिया-मंत्र, चौलकर्म-मंत्र, लिपि- संख्यान-मंत्र, उपनीतिक्रिया-मंत्र आदि प्रमुख रूप से उल्लिखित हैं।
इस प्रकार ब्राह्मण का उपनयन संस्कार करते समय अणुव्रत, गुणव्रत और शीलादि से संस्कार करने का तथा व्रतोच्चारण के समय मद्य, मांस, मधु और पाँच उदुम्बर के त्याग का उपदेश दिया गया है।
उक्त वर्णन से सुज्ञात होता है कि महापुराण में श्रावक सम्बन्धी संस्कार विधियों का संक्षिप्त किन्तु शास्त्रोक्त वर्णन हुआ है। इसमें अन्य क्रियाकाण्ड अधिक चर्चित हुए हैं। यशस्तिलकचम्पूगत-उपासकाध्ययन
श्री सोमदेवसूरि ने अपने प्रसिद्ध और महान् ग्रन्थ यशस्तिलकचम्पू के छठे, सातवें और आठवें आश्वास में श्रावकधर्म विधि का अति विस्तार से वर्णन किया है और इसलिए उन्होंने स्वयं ही उन आश्वासों का 'उपासकाध्ययन' नाम रखा है। यह ग्रन्थ संस्कृत गद्य एवं पद्य की मिश्रित शैली में है। इसका रचना समय वि.सं. १०१६ है। इसका अपरनाम 'यशोधरचरित्र' है।
प्रस्तुत कृति में यशोधर राजा को लक्ष्य करके श्रावकधर्म का वर्णन किया गया है किन्तु वह सभी भव्य पुरुषों के निमित्त किया गया जानना चाहिये। इन्होंने धर्म का स्वरूप बताते हुए कहा है कि जिससे अभ्युदय और निःश्रेयस् की प्राप्ति हो, वह धर्म है। आगे कहा है गृहस्थ का धर्म प्रवृत्ति रूप है उस दृष्टि से सम्यक्त्व, सम्यक्त्व के दोष, सम्यक्त्व के भेद-प्रभेद आदि का वर्णन किया है।
सातवें आश्वास में आठ मूलगुण, बारह व्रत, रात्रिभोजननिषेध, अभक्ष्य वस्तु का निषेध, प्रायश्चित्त का विधान, प्रायश्चित्त देने का अधिकारी आदि का उल्लेख किया है।
' (क) प्रस्तुत कृति के उक्त तीन आश्वास 'श्रावकाचार संग्रह' में संगृहीत है।
(ख) यह ग्रन्थ 'भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली' से प्रकाशित है तथा इसका अनुवाद पं. कैलाशचन्द्रजी शास्त्री ने किया है।
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