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48 / श्रावकाचार सम्बन्धी साहित्य
व्रतों के पाँच-पाँच अतिचार कहे गये हैं। इसमें आठ मूलगुणों और ग्यारह प्रतिमाओं का वर्णन नहीं हुआ है यह बात विशेष विचारणीय है।
तारणतरण - श्रावकाचार
इस ग्रन्थ के कर्त्ता तारणतरण स्वामी है। यह दिगम्बर जैन मुनि थे ऐसा किन्हीं का कहना है। किन्हीं के विचार से यह ब्रह्मचारी थे । कुछ भी हो ये एक धर्म के ज्ञाता आत्मरसी महात्मा थे। यह श्रावकाचार ग्रन्थ किसी विशेष भाषा में नहीं है। इसमें संस्कृत, प्राकृत, देश भाषा के मिश्रित शब्द हैं। इसमें कुल ४६३ श्लोक हैं। इस ग्रन्थ की रचना वि.सं. १६४५ में हुई है।
इस ग्रन्थ में पुनरुक्ति दोष बहुत है तथापि सम्यग्दर्शन और शुद्धात्मानुभव की दृढ़ता स्थान-स्थान पर बताई है। इस कृति का अध्ययन करने से यह अवगत होता है कि अब तक जो दिगम्बर परम्परा में श्रावकाचार प्रचलित हैं उनमें मात्र व्यवहार का ही कथन अधिक हुआ है, परन्तु इस ग्रन्थ में निश्चयनय की प्रधानता से व्यवहार का कथन है। पढ़ने से पद-पद पर अध्यात्मरस का स्वाद आता है।
इसमें सामान्यतया मिथ्यात्व कषाय, तीन मूढ़ता, सम्यग्दर्शन, सुदेवादि, कुदेवादि, चार विकथा, आठमद, धर्म, त्रेपन क्रियाएँ, ग्यारह प्रतिमा, पंचपरमेष्ठी, रत्नत्रय, श्रावक के नित्य छः कर्म आदि का स्वरूप बताया गया है। इसके साथ ही जल छानने की विधि, भोज्य पदार्थों की मर्यादा, सम्यग्दर्शन का माहात्म्य, सम्यग्दृष्टि का आचरण, १२ अंगों की मापादि, सम्यक्त्वी के ७५ गुण इत्यादि विषयों पर भी प्रकाश डाला गया है। ग्रन्थकर्त्ता की अन्य १४ रचनाएँ भी प्रसिद्ध हैं। उनमें मालारोहण, पंडितपूजा, उपदेश - शुद्धसार आदि प्रमुख हैं।
दौलतराम - श्रावकाचार
यह श्रावकाचार श्री दौलतरामजी द्वारा रचित है। उनकी यह कृति हिन्दी की छन्दोबद्ध शैली में रची गई है। इन्होंने स्वयं इस कृति का नाम 'क्रिया कोष' रखा है और वह इसी नाम से प्रसिद्ध है। इस क्रिया कोष की रचना वि.सं. १७६५ में हुई है। इस कृति में श्लोक परिमाण और रचे गये छन्दों के नाम नहीं दिये गये हैं। इसमें कुछ गाथाएँ और श्लोक अवश्य उद्धृत किये गये हैं जिनकी संख्या ६ है ।
प्रस्तुत श्रावकाचार में जो विषय चर्चित हुए हैं वे निम्नलिखित हैं
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क्रियाकोष की रचना का उद्देश्य, त्रेसठशलाका महापुरुषों का वर्णन, श्रावक की त्रेपन क्रियाएँ, आठमूलगुण, भक्ष्य वस्तुओं की काल मर्यादा,
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