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जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/47
का प्रतिपादन करने के लिए 'चारित्रासार' ग्रन्थ की रचना की है। यह दो भागों में विभक्त है। उनमें पूर्वार्ध भाग श्रावकधर्म का प्रतिपादक हैं और उत्तरार्ध भाग मुनिधर्म का निरूपक है। यह कृति संस्कृत की गद्य-पद्य शैली में है। इनका समय वि.सं. की १० वीं शती का पूर्वार्ध माना जाता है। 'चारित्रासार" के प्रथम विभाग में ग्यारह प्रतिमाओं के आधार पर श्रावकधर्म विधि का वर्णन किया गया है। दर्शन प्रतिमा का वर्णन करते हुए सम्यक्त्व को भवजलधिपोत के समान कहा है। दूसरी व्रत प्रतिमावाले श्रावक को पंच अणुव्रतों के साथ रात्रि-भोजन त्याग करने का विधान बतलाया है। गुणव्रत और शिक्षाव्रत को शीलसप्तक कहा है।
आगे हिंसादि पापों से रहित पुरुष को द्यूत, मद्य और मांस सेवन न करने का उपदेश दिया है। इन तीनों के सेवन से महादुःख पाने वालों के कथानक भी दिये गये हैं। इसी क्रम में महापुराण के अनुसार पक्ष, चर्चा और साधन का वर्णन तथा सोमदेव के उपासकाध्ययन का श्लोक उद्धृत कर श्रावक के ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और भिक्षुक ये चार आश्रम कहे हैं। पुनः महापुराण के अनुसार इज्या, वार्ता आदि षट्कर्तव्यों का वर्णन किया है। अन्त में सल्लेखना (मारणान्तिक तप) का उल्लेख किया है।
श्री चामुण्डराय का जीवन वृत्तान्त पढ़ने जैसा है। उसमें उल्लेख हैं कि श्रवणबेलगोला में बाहुबली की मूर्ति प्रतिष्ठा आपने करवाई है। इनकी कनड़ी मातृभाषा थी, उसमें उन्होंने 'त्रिषष्टिपुराण' रचा है। तत्त्वार्थसूत्रगत-श्रावकाचार
_ 'तत्त्वार्थसूत्र' आचार्य उमास्वाति द्वारा संस्कृत भाषा में निबद्ध की गई रचना है। इसमें दस अध्याय हैं। उनमें से सातवाँ अध्याय श्रावकधर्म का प्रतिपादक है। इस कृति का रचनाकाल विक्रम की प्रथम शती से तीसरी शती के मध्य माना गया है। इस सम्बन्ध में पूर्व में चर्चा की जा चुकी है।
यहाँ यह जानने योग्य हैं कि श्रावकधर्म का व्यवस्थित वर्णन उपासकदशा के पश्चात् तत्त्वार्थसूत्र में दृष्टिगोचर होता है। प्रस्तुत कृति के सातवें अध्याय में व्रती का स्वरूप बतलाया गया है। उसके बाद व्रती के आगारी-अणगारी दो भेद बताकर मुनि के अहिंसादि महाव्रतों की पाँच-पाँच भावनाएँ और श्रावक के बारह
' यह कृति 'श्रावकाचार संग्रह' भा. २ में संकलित है। २ देखिए, 'श्रावकाचार संग्रह' भा. ४, पृ. २६ ३ यह ग्रन्थ विभिन्न स्थानों से मुद्रित हुआ है। इसकी पं. सुखलालजीकृत अनुवादित कृति सर्वाधिक प्रसिद्ध है।
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