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________________ 44/श्रावकाचार सम्बन्धी साहित्य है कि इनका श्रावकाचार सम्बन्धी ज्ञान स्वयं के शास्त्र-स्वाध्याय जनित था। ___ इन्होंने अपने श्रावकाचार में निम्नलिखित विषय उल्लिखित किये हैं. उनके नामोल्लेख इस प्रकार है - आठ मूलगुण, बाईस अभक्ष्य, कांजीभक्षण का निषेध, सात स्थानों पर चन्दोवा कपड़े की छत लगाने का विधान, अचार आदि के भक्षण का निषेध, चौके के भीतर भोजन करने का विधान, श्रावक के बारहव्रतों का वर्णन, श्रावक के सत्रह नियम, भोजन के सात अन्तराय, सात स्थानों पर मौन रखने का विधान, ग्यारह प्रतिमाओं का विधान, जलगालन का विधान, प्रासुक जल का विधान, रात्रिभोजन का निषेध, लोक में प्रचलित अनेक मिथ्यामतों का वर्णन, सूतक-पातक विधान, नवग्रह शान्ति का विधान, मन्त्रजाप और पूजा का विधान, त्रिकाल पूजन का विधान, अपने क्रियाकोष की रचना के आधार का वर्णन, लोक-प्रचलित और मनगढंत मिथ्याव्रतों का निषेध, अष्टाहिकव्रत, सोलहकारणव्रत, रत्नत्रयव्रत, लब्धिव्रत, समवसरणव्रत, आकाश- पंचमी, अक्षयदशमी, चन्दनषष्ठी, निर्दोषसप्तमी, अनन्तचतुर्दशी और नवकारपैंतीसी आदि अनेक प्रकार के व्रत विधान तथा व्रतों के उद्यापन की विधि का विधान इत्यादि। __उपर्युक्त वर्णन से ज्ञात होता है कि श्री किशनसिंह जी ने श्रावकाचार विधि के साथ-साथ तत्सम्बन्धी और उस समय में प्रचलित अनेक प्रकार के व्रतादि का सुन्दर निरूपण किया है। इसके साथ ही अपने समय में प्रचलित मित्वियों के व्रतों और कुरीतियों का वर्णन कर उनके त्याग करने का भी निर्देश दिया है। कुन्दकुन्द-श्रावकाचार यह रचना' समयसार, प्रवचनसार आदि पाहुड़ों की रचना करने वाले कुन्दकुन्दाचार्य की नहीं है यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है। क्योंकि इस कृति के प्रथम उल्लास के अन्त में ग्रन्थकार ने अपने को जिनचन्द्राचार्य का शिष्य स्पष्टतः घोषित किया है। इसके अतिरिक्त अनेक ऐसे प्रमाण हैं जो इसे कुन्दकुन्दाचार्य की कृति होने का निषेध करते हैं। इस कृति के आधार पर यह कह सकते है कि किसी भट्टारक के द्वारा कुन्दकुन्दाचार्य के नाम पर यह रचना की गई हो अथवा परवर्ती किसी कुन्दकुन्द नामधारी व्यक्ति के द्वारा रचा गया है। प्रस्तुत कृति संस्कृत के पद्यों में निबद्ध है। इसमें बारह उल्लास है। ' यह कृति अप्रकाशित है किन्तु 'श्रावकाचार संग्रह' के चतुर्थ भा. में संकलित की गई है। इसकी प्रस्तावना में इसका रचनाकाल वि.सं. १६७० कहा है। २ देखिए. श्रावकाचारसंग्रह भा. ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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