SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 693
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास / 663 ७. आराधना - विभाग इस विभाग में आराधना से सम्बन्धित कई विषयों का उल्लेख किया गया हैं उनमें ये मुख्य हैं १. अंतिम आराधना विधि, २ . ग्रहशान्ति विधि, ३. चोघडिया देखने की विधि, ४. सूतक ग्रहण असज्झाय का विचार ५. कार्तिक चैत्री पूर्णिमा के दिन शत्रुंजय पट्ट दर्शन विधि, ६. रक्षापोटली अभिमंत्रण विधि, ७. जैन शारदा पूजन विधि | ८. चातुर्मास सम्बन्धी चार विधियाँ १. वस्त्र बहराने की विधि, २. मुखवस्त्रिका प्रतिलखेन करने की विधि, ३. घर खुल्ला रखने की विधि, ४. चातुर्मास परिवर्तन करने की विधि - ६. मृत्यु के उपरान्त करने योग्य विधि - इसी के साथ ज्वर उतारने का छंद, श्री लोगस्सकल्प, श्री सर्वतोभद्रयंत्र, मन्दिर की ध्वजाओं का चित्रमाप, बीशस्थानक यंत्र, वासचूर्ण मंत्रित करने सम्बन्धी सूचनाएँ और चित्र, शांतिस्नात्र की पीठिका का चित्र और उसकी समझ, द्विदल की जानकारी आदि का भी उल्लेख किया गया है। निष्कर्षतः यह एक संग्रहणीय उपयोगी एवं विशिष्ट कृति है । यहाँ आवश्यक विधियों के संग्रह का जो विवरण उपलब्ध होता है वह अन्यत्र दुर्लभ है। यह इस कृति की तृतीय आवृत्ति है। वीरत्थओपइण्णयं (वीरस्तवप्रकीर्णक) वीरस्तवप्रकीर्णक प्राकृत भाषा में निबद्ध एक पद्यात्मक रचना' है। वीरस्तव शब्द 'वीर' और 'स्तव' इन दो शब्दों के योग से बना है जिसका सामान्य अर्थ - तीर्थंकर महावीर की स्तुति करना है। यह कृति स्तुति विधान से सम्बन्धित है। सामान्यतया स्तुति भी धार्मिक क्रियाकाण्ड या विधि-विधान का एक अंग होती है। इसी दृष्टि से इसे विधि-विधान के ग्रन्थों में समाहित किया गया है वैसे इसमें विधि-विधान सम्बन्धी कोई प्रक्रिया उल्लेखित नहीं है। प्रस्तुत कृति का अध्ययन करने से यह स्पष्ट होता हैं कि परमात्मा की स्तुति किस प्रकार की जानी चाहिए। वस्तुतः इस कृति में विशिष्ट प्रकार से स्तुति करने का विधान प्रतिपादित है। प्रस्तुत कृति के रचनाकाल के सम्बन्ध में कोई विशेष उल्लेख उपलब्ध नहीं होता है। कुछ साक्ष्यों के आधार पर यह वीरभद्र की रचना मानी गई है। Jain Education International , (क) यह रचना मुनि पुण्यविजय जी द्वारा संपादित हैं। (ख) इस कृति का हिन्दी अनुवाद डॉ. सुभाषकोठारी ने किया है। यह प्रति 'आगम अहिंसा-समता एवं प्राकृत् संस्थान, उदयपुर' से सन् १६६५ में प्रकाशित हुई है। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy