SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 691
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विधिसंग्रह प्रस्तुत संग्रह' मुख्यतः गुजराती गद्य में है। कुछ विधान पद्य रूप में भी गुम्फित है। यह एक संकलित की गई उपयोगी कृति है। इस पुस्तक में चतुर्विध संघ अर्थात् साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका के द्वारा की जाने वाली क्रिया विधियों का समावेश किया गया है। यह कृति सात भागों में विभक्त है। यहाँ विशेष ज्ञातव्य है कि जैन विधि-विधानों को लेकर कुछ पुस्तकें स्वतन्त्र रूप में प्रकाशन में आई हैं तथापि यह संग्रह अद्वितीय है। इसमें कुल ६० विधियों का उल्लेख हैं। इसक सम्पादन आगमोद्धारक आनंदसागरसूरिजी के प्रशिष्य हेमसागरसूरिजी के शिष्य मुनि अमरेन्द्र - सागरजी एवं मुनि महाभद्रसागरजी ने किया है। इस कृति के सात विभागों का विषयानुक्रम और नाम निर्देश निम्नलिखित है - जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास / 661 १. दर्शन-विभाग इस विभाग में सात प्रकार की विधियों का निर्देश हैं- १. जिनमन्दिर दर्शन विधि, २. अष्टप्रकारी पूजा विधि, ३. स्वस्तिक रचना विधि, ४ . चैत्यवंदन विधि, ५. स्नात्रपूजा विधि, ६. शांतिकलश विधि, ७. ध्वजा आरोपण विधि । पृथक्-पृथक् पूजाओं की सामग्री एवं पूजा योग्य उपकरणों की सूची भी दी गई है। - 9. २. उपाश्रय विभाग इस दूसरे विभाग में पच्चीस प्रकार की विधियों का वर्णन है जो मुख्य रूप से उपाश्रय ( धर्मस्थान) में की जाती हैं उनके नाम निम्न हैं गुरुवंदन वधि, २. गुरु महाराज के मुख से सूत्र पाठ ग्रहण करने की विधि, ३. ज्ञानपूजन विधि ४. मुखवस्त्रिका प्रतिलेखन विधि, ५. सामायिक ग्रहण विधि, ६. सामायिक पारण विधि, ७. रात्रिक प्रतिक्रमण विधि, ८. पौषध ग्रहण विधि, ६. पौषध में प्रातः कालीन की प्रतिलेखन करने की विधि, १०. देववंदन विधि, ११. पौषध में सज्झाय करने की विधि, १२. रात्रिक मुखवस्त्रिका प्रतिलेखन एवं द्वादशावर्त्तवंदन विधि, १३. उग्घाड़ा पौरुषी विधि, १४. पौषधव्रत में जिनमन्दिर गमन विधि, १५. पौषध में प्रत्याख्यान पारने की विधि, १६ पौषधधारी द्वारा आहार ( एकासन) के लिए गृहगमन विधि, १७. पौषधधारी द्वारा भोजन पश्चात् चैत्यवंदन करने की विधि, १८. रात्रिपौषधधारियों के लिए चौबीस मांडला विधि, १६. दैवसिक प्रतिक्रमण विधि, २०. संथारापौरुषी विधि, २१. पौषध पारण विधि, २२. नवकारवाली गुणन विधि, २३. कायोत्सर्ग विधि, २४. पाक्षिक, चातुर्मासिक, सांवत्सरिक प्रतिक्रमण विधि, २५. Jain Education International -- 9 यह कृति वि.सं. २०३६ में, अमरचंद - रतनचंद झवेरी, ७७ अ वालकेश्वर रोड़, मुंबई से प्रकाशित है। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy