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________________ 640/विविध विषय सम्बन्धी साहित्य ६. पंचगुरुभक्ति - इसमें अरिहन्त आदि पाँच परमेष्ठियों का स्वरूप बतलाकर उन्हें नमस्कार किया गया है। ७. तीर्थंकरभक्ति - इसमें प्रभुऋषभदेव से लेकर महावीरस्वामी तक के चौबीस तीर्थकरों का संकीर्तन है। यह श्वेताम्बरों के 'लोगस्ससुत्तं' के साथ मिलती-जुलती है। ८. निर्वाणभक्ति - इसमें प्रभु ऋषभदेव आदि चौबीस तीर्थकर, बालभद्र और कई मुनियों के नाम देकर उनकी निर्वाण भूमि का उल्लेख किया गया है। टीका - उपर्युक्त आठ भक्तियों में से प्रथम पाँच पर प्रभाचन्द्र की 'क्रियाकलाप' नाम की टीका है। इन पाँचों के अनुरूप संस्कृत भक्तियों पर तथा निर्वाणभक्ति एवं नन्दीश्वरभक्ति पर भी इनकी टीका है। दशभक्त्यादि संग्रह में निम्नलिखित बारह भक्तियाँ प्राकृत कण्डिका एवं क्षेपक श्लोक सहित हिन्दी अन्वयार्थ और भावार्थ के साथ देखी जाती हैं - सिद्धभक्ति, श्रुतभक्ति, चारित्रभक्ति, योगभक्ति, आचार्यभक्ति, पंचगुरु- भक्ति, तीर्थकरभक्ति, शान्तिभक्ति, समाधिभक्ति, निर्वाणभक्ति, नन्दीश्वरभक्ति और चैत्यभक्ति। इनके पद्यों की संख्या क्रमशः १०, ३०, १०, ८, ११, ११, ५, १५, १८, ३०, ६० और ३५ हैं। दिनचर्या ___ यह एक संकलित कृति है जो संस्कृत मिश्रित प्राकृत भाषा में गुम्फित है। इसका संकलन ब्र. प्रदीप शास्त्री ने किया है। इस कृति का सम्बन्ध दिगम्बर परम्परा से है। इसमें साधु एवं गृहस्थ के करने योग्य षडावश्यक विधान का निरूपण किया गया है। इसकी प्रस्तावना में साधुचर्या का संक्षिप्त उल्लेख करते हुए लिखा है कि ऐलक, क्षुल्लक और साधुजन प्रातः उठने पर रात्रि सम्बन्धी दोषों के निराकरणार्थ रात्रिक प्रतिक्रमण करते हैं। तत्पश्चात् सामायिक करते हैं। सामायिक में साधु-व्रतीजन सामायिक पाठ तथा देववन्दन हेतु स्वयम्भूस्तोत्र पढ़ते हैं। तदनन्तर आचार्य वन्दना कर प्रातःकाल की अन्य क्रियाएँ करते हैं। आहारोपरान्त प्रत्याख्यानार्थ (अगले दिन तक अन्न-जल का परित्याग करने के लिए) ईर्यापथभक्ति पढ़ते हैं। मध्याह में स्वाध्यायादि करते हैं। दिनभर में ' दशभक्त्यादिसंग्रह पृ. १२-१३ में यह भक्ति आती है, किन्तु वहाँ इसका ‘भत्ति' के रूप में निर्देश नहीं है। २ इन आठों भक्तियों का सारांश डा. उपाध्ये ने अंग्रेजी में प्रवचनसार की प्रस्तावना (पृ. २६-२८) में दिया है। ३ यह पुस्तक श्री दिगम्बर साहित्य प्रकाशन समिति बरेला, जबलपुर से प्रकाशित है। " इस स्तोत्र में १४३ श्लोकों से चौबीस तीर्थकरों की स्तवना की गई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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