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________________ 624/ज्योतिष-निमित्त-शकुन सम्बन्धी साहित्य सूचना देते हैं। इसमें ज्योतिष विधान सम्बन्धी निम्न विषयों पर प्रकाश डाला गया है- स्थानबल, कायबल, दृष्टिफल, ग्रहावस्था, ग्रहमैत्री, राशिवैचित्र्य, षड्वर्ग-शुद्धि, लग्नज्ञान अंशकफल आदि। प्रकारान्तर से जन्मदशाफल, राजयोग, ग्रहस्वरूप, द्वादशभावों की तत्त्वचिंता, केन्द्रविचार, वर्षफल, निधानप्रकरण, भोजनप्रकरण, ग्रामप्रकरण, पुत्रप्रकरण, रोगप्रकरण, जायाप्रकरण, सुरतप्रकरण, परचंक्रामरण, गमनागमन, स्थानदोष, स्त्रीलाभप्रकरण आदि की चर्चा भी की गई है।' ज्ञानचतुर्विंशिका इसके रचनाकार कासहृद्गच्छीय उपाध्याय नरचन्द्र मुनि है। यह रचना २४ पद्यों में वि.सं. १३२५ में हुई है। इसमें लग्नानयन, होराद्यानयन, प्रश्नाक्षराल्लग्नानयन, सर्वलग्नग्रहबल, प्रश्नयोग, पतितादिज्ञान, पुत्र-पुत्रीज्ञान, दोषज्ञान, जयपृच्छा, रोगपृच्छा आदि ज्योतिष विषयों का वर्णन है। यह ग्रन्थ अप्रकाशित है। अवचूरि - इस ग्रन्थ पर उपाध्याय नरचन्द्र मुनि द्वारा स्वोपज्ञवृत्ति रची गई है। ' यह ग्रन्थ हिन्दी अनुवाद सहित कुशल एस्ट्रोलॉजिकल रिसर्च इन्स्टीट्यूट, लाहौर से प्रकाशित हुआ है। इसकी १ पत्र की प्रति ला.द.भा.सं. विद्यामंदिर, अहमदाबाद में है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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