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________________ 620/ज्योतिष-निमित्त-शकुन सम्बन्धी साहित्य चौथा रत्न - इस रत्न में प्रासाद के मंडपों का विधान, मंडप के भेद एवं प्रकार, मंडप स्तंभ की ऊँचाई का परिमाण, स्तंभ के प्रकार, चारों दिशाओं में जिनालय बनाने का विधान, प्रासाद के चारों दिशाओं में रथशालादि का विधान, उपाश्रय विधान, मंडप के ऊपर घुमट का विधान, मंडप तथा प्रासाद के सांभरण का विधान, जैन प्रतिमा के सिंहासन का विधान गंभारा और द्वारमान में मूर्ति एवं सिंहासन रखने का परिमाण इत्यादि विषयों की चर्चा की गई है। कई प्राचीन जिनालयों, मंडपों, स्तंभों, वेदिकाओं, सम्बन्धी चित्र दिये गये हैं। पाँचवा रत्न - यह विभाग विभिन्न प्रकार के प्रासाद, शिखर, ध्वजादंड, जीर्णोद्वार आदि का प्रतिपादक है। उनमें प्रमुखतः नागरादि-द्राविडादि-संधारादि प्रासाद के लक्षण, शिखर की ऊँचाई तथा रेखा छोड़ने का परिमाण, शिखर के आमलसार का परिमाण, कलश विधान, प्रासाद के ध्वजादंड का परिमाण, ध्वजा की पताका का परिमाण, ध्वजदंड के तेरह नाम, चतुर्मुखी प्रासाद पर ध्वजा रोपने की विधि, जीर्णोद्वार का विधान, प्रतिमा उत्थापन करने की विधि, गृह के विषय में द्वार विधान दादर विधान आदि का विवेचन किया गया है। छट्ठा रत्न - इसमें केशरादि पच्चीस प्रकार के जिनालयों का सचित्र वर्णन किया गया है। साँतवां रत्न - इस विभाग में तिलकसागरादि पच्चीस प्रकार के जिनालयों का सचित्र उल्लेख किया गया है। आठवाँ रत्न - यह विभाग बहत्तर प्रकार के जिनालयों का सचित्र निरूपण करता है। नवमाँ रत्न - यह विभाग वैराज्यादि पच्चीस प्रकार के जिनालयों का सचित्र विवरण प्रस्तुत करता है। दशवाँ रत्न - इस द्वार में मेर्वादि बीस प्रकार के जिनालयों का सचित्र निरूपण हुआ है। ग्यारहवाँ रत्न - इस विभाग में देवमूर्ति का स्वरूप, शिला की परीक्षा, घर में प्रतिमा पूजने का परिमाण, शुभमूर्ति और खंडितमूर्ति की पूजा का विचार, पुनः संस्कारित (अधिवासित) करने योग्य मूर्ति, पाषाणमूर्ति का शिर विधान, गणेश की प्रतिमा का परिमाण, पंचदेव प्रतिष्ठा, नवग्रह मूर्ति का स्वरूप, अष्ट दिक्पाल का स्वरूप, विष्णु- शालिग्राम-शिव-गरुड़-उमा माहेश्वर आदि की मूर्तियों का स्वरूप, लक्ष्मी-पार्वती- माहेश्वरी आदि देवियों का स्वरूप वर्णित है। यह विभाग हिन्दू परम्परा से सम्बद्ध है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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