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________________ 610/ज्योतिष-निमित्त-शकुन सम्बन्धी साहित्य आचार्य भद्रबाहु द्वारा प्राकृत में रचित ग्रन्थ के उद्धार के रूप में है, ऐसा विद्वानों का मन्तव्य है। इस नाम का जो ग्रन्थ संस्कृत में रचा हुआ प्रकाश में आया है उसमें २७ प्रकरण इस नाम के हैं -१. ग्रन्थांगसंचय, २-३. उल्का लक्षण, ४. परिवेषवर्णन, ५. विषुल्लक्षण, ६. अग्रलक्षण, ७. संध्यालक्षण, ८. मेघकांड, ६. वातलक्षण, १०. सकल- मारसमुच्चयवर्षण, ११. गन्धर्वनगर, १२. गर्भावातलक्षण, १३. राजयात्राध्याय, १४. सकलशुभाशुभव्याख्यान विधानकथन, १५. भगवत्रिलोकपतिदैत्यगुरु, १६. शनैश्चरचार, १७. बृहस्पतिचार, १८. बुधचार, १६. अंगारकचार, २०-२१. राहुचार, २२. आदित्यचार, २३. चन्द्रचार, २४. ग्रहयुद्ध, २५. संग्रहयोगर्धकाण्ड, २६. स्वप्नाध्याय, २७. वस्त्रव्यवहारनिमित्तका' इस ग्रन्थ की रचना के विषय में भिन्न-भिन्न मत है। मुनि श्री जिनविजयजी ने इसे १२ वीं-१३ वीं शती का ग्रन्थ माना है। पं. श्री कल्याणविजयजी ने इसे १५ वीं शती के बाद का कहा है। पं. जुगलकिशोरजी मुख्तार ने इसे १७ वीं शती के एक भट्टारक के समय की कृति बताया है, जो ठीक मालूम होता है। भुवनदीपक इस कृति का अपरनाम 'ग्रहभावप्रकाश' है। इसके कर्ता आचार्य पद्मप्रभसूरि हैं। ये नागपुरीय तपागच्छ के संस्थापक थे। इस कृति का रचनाकाल वि.सं. १२२१ है। यह ग्रन्थ छोटा होते हुए भी महत्त्वपूर्ण है। इसमें निम्नोक्त छत्तीस द्वार विवेचित हैं - १. ग्रहों के अधिपति, २. ग्रहों की उच्च-नीच स्थिति, ३. पारस्परिक मित्रता, ४. राहुविचार, ५. केतुविचार, ६. ग्रहचक्रो का स्वरूप, ७. बारहभाव, ८. अभीष्ट कालनिर्णय, ६. लग्नविचार, १०. विनष्टग्रह, ११. चार प्रकार के राजयोग, १२. लाभविचार, १३. लाभफल, १४. गर्भ की क्षेमकुशलता, १५. स्त्रीगर्भ-प्रसूति, १६. दो संतानों का योग, १७. गर्भ के महीने, १८. भार्या, १६. विषकन्या, २०. भावों के ग्रह, २१. विवाह विचारणा, २२. विवाद, २३. मिश्र-पद निर्णय, २४. पृच्छा निर्णय, २५. प्रवासी का गमनागमन, २६. मृत्युयोग, २७. दुर्गभंग, २८. चौर्यस्थान, २६. अर्धज्ञान, ३०. मरण, ३१. लाभोदय, ३२. लग्न का मासफल, ३३. द्रेष्काणफल, ३४. दोषज्ञान, ३५. राजाओं की दिनचर्या और ३६. इस गर्भ में क्या होगा? इस प्रकार कुल १७० श्लोकों में फलित ' यह ग्रन्थ हिन्दीभाषानुवाद सहित भारतीय ज्ञानपीट काशी, सन् १६५६ से प्रकाशित है। २ देखिए - निबन्धनिचय पृ. २६७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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