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608 /ज्योतिष-निमित्त- शकुन सम्बन्धी साहित्य
पंचांगदीपिका
यह कृति अज्ञातकर्तृक है। यह जैन श्वेताम्बर कान्फरेन्स से सन् १६०६ में प्रकाशित हुई है। इस कृति में ज्योतिष सम्बन्धी 'पांच अंगों को समझने की विधि' पर प्रकाश डाला गया है ऐसा इस कृति के नाम से ज्ञात होता है। हमें मूल कृति दृष्टिगत नहीं हो सकी है।
पिपीलियानाण (पिपीलिकाज्ञान)
किसी जैनाचार्य द्वारा रची हुई यह कृति पाटन के जैन भंडार में मौजूद है। यह रचना प्राकृत में है। इसमें किस रंग की चीटियाँ किस स्थान की ओर जाती है, यह देखकर भविष्य में होने वाली शुभाशुभ घटनाओं का वर्णन किया गया है। प्रश्नसुन्दरी
इस ग्रन्थ के कर्त्ता उपाध्याय मेघविजयजी है। इसमें प्रश्न निकालने की पद्धति का वर्णन किया गया है। यह ग्रन्थ अप्रकाशित है।
प्रश्नशतक
इसके रचनाकर्ता कासहृदगच्छीय नरचन्द्र उपाध्याय है। यह ग्रन्थ वि.सं. १३२४ में रचा गया है। इसमें ज्योतिष विधान सम्बन्धी सौ प्रश्नों का समाधान किया गया है। यह ग्रन्थ अप्रकाशित है |
अवचूरि- इस ग्रन्थ पर स्वोपज्ञ अवचूरि भी निर्मित है।
प्रश्नप्रकाश
प्रभावकचरित (श्रृंग ५, श्लो. ३४७ ) के अनुसार इस ग्रन्थ के कर्त्ता पादलिप्तसूरि है। इन पादलिप्तसूरि ने कई ग्रन्थ रचे हैं। ये विद्या, लब्धि एवं सिद्धियों के धारक थे। इनकी एक रचना 'वीरथय' नामक है। उसमें सुवर्णसिद्धि तथा व्योमसिद्धि का विवरण गुप्त रीति से दिया है।
प्रश्नपद्धति
यह ग्रन्थ मुनि हरिश्चन्द्रगणि ने संस्कृत में रचा है। यह ज्योतिष विधान का अनुपम ग्रन्थ है। इसके कर्त्ता ने इसमें निर्देश दिया हैं कि गीतार्थचूड़ामणि आचार्य अभयदेवसूरि के मुख से प्रश्नों का अवधारण कर उन्हीं की कृपा से इस ग्रन्थ की रचना की है। '
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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भा. ५
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