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________________ 572 / मंत्र, तंत्र, विद्या सम्बन्धी साहित्य प्रतिपादित विषयवस्तु का नामनिर्देश इस प्रकार है - १. सूरिमन्त्र की प्रथम वाचना एवं उसकी विधि, २. द्वितीय वाचना एवं उसकी विधि, ३. सूरिमन्त्र की ध्यान विधि, ४. सूरिमन्त्र की साधना विधि, ५. सूरिमन्त्र की तृतीय वाचना एवं उसकी विधि, ६. सूरिमन्त्रगर्भित विद्याप्रस्थानपट्ट विधि, ७. मन्त्रशुद्धि का वर्णन अर्थात् जब गौतम स्वामी को सूरिमन्त्र दिया गया था तब उसमें ग्यारह मेरु थे उसके बाद दुषमकाल के प्रभाव से क्रमशः घटते हुए दुःप्रसहसूरि पर्यन्त तीन मेरु युक्त लब्धिपद रहेंगे, ऐसा उल्लेख किया गया है । ८. सूरिमन्त्र की तप विधि । अन्त में सूरिमन्त्र के अधिष्ठायक गौतमस्वामी की स्तुति एवं सूरिमन्त्र के पदों की संख्या बतायी गई हैं। प्रस्तुत कृति के परिचय से यह होता हैं कि यह रचना आम्नाय विशेष को लेकर नहीं रची गई हैं, अपितु इसमें प्राचीन परम्परा ही मुख्य आधार रही हैं। यह कृति सूरिमन्त्रकल्पसमुच्चय भा. २ के साथ प्रकाशित है। संक्षिप्तः सूरिमन्त्रविचारः यह एक संकलित रचना प्रतीत होती है। इस कृति में सूरिमन्त्र की साधना विधि संक्षेप में दी गई है, ऐसा कृति नाम से स्पष्ट होता है। यह मुख्य प से संस्कृत गद्य में हैं। इसमें प्राकृत की मात्र चार गाथाएँ है । इसमें सामान्यतया सूरिमन्त्र की ध्यानविधि एवं सूरिमन्त्र की साधनाविधि का वर्णन किया गया है, इसके साथ पाँच पीठ के लब्धिपदों की अक्षरसंख्या भी बतायी गई हैं। सूरिमंत्रआराधनाविधि यह कृति' तपागच्छीय श्री देवेन्द्रसूरि की मुख्यतः संस्कृत गद्य में है । मोहनसूरिजी के शिष्य मुनि प्रीतिविजयजी द्वारा इस कृति का संशोधन किया गया है। इस कृति के प्रारम्भ में मंगलाचरण एवं ग्रन्थरचना से सम्बन्धित एक श्लोक है उसमें 'अहं' बीज को नमस्कार करके सूरिमंत्रकल्प और आप्तउपदेश के अनुसार सूरिमंत्र की आराधना विधि को कहने की प्रतिज्ञा की गई है। तत्पश्चात् पाँच प्रस्थान १. विद्यापीठ २. महाविद्यापीठ ३. उपविद्यापीठ ४. मंत्रपीठ और ५. मंत्रराज - इन पांच प्रस्थानों की आराधना विधि का विस्तारपूर्वक विवेचन किया गया है। इसमें प्रत्येक पीठ के नान्दीपदों की संख्या, जापसंख्या, मुद्रा, दिशा, आसन, जापफल, फल आदि का भी वर्णन हैं। १ यह कृति वि.सं. १६८७ में, 'शाह डाह्याभाई महोकमलाल पांजरापोल अहमदाबाद' से प्रकाशित है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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