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________________ 570 / मंत्र, तंत्र, विद्या सम्बन्धी साहित्य पौषपूर्णिमा के दिन आचार्य जयसूरि के द्वारा लिखा गया है। इसके पश्चात् सूरिमन्त्र अधिष्ठायक सम्बन्धी दो स्तोत्र और एक स्तोत्र गौतमस्वामी का दिया गया है। सूरिमन्त्रस्मरणविधि प्रस्तुत कृति अत्यन्त लघु है लेकिन राजगच्छीय शाखा के आचार्यों के लिए परम उपयोगी है। इस कृति में राजगच्छीय श्री हंसराजसूरि के पट्ट पर विराजित होने वाले विजयप्रभसूरि तथा उनकी परम्परा के अन्य सूरीवरों द्वारा जिस सूरिमन्त्र की साधना की गई वही सूरिमन्त्र ही यहाँ प्रतिपादित है। यह कृति मुख्यतः संस्कृत गद्य में है। यह रचना अपने नाम के अनुसार सूरिमन्त्र के स्मरण करने की विधि से सम्बन्धित है। इसके अन्तर्गत तेरह नान्दीपद दिये गये हैं । जाप करने की विधि कही गई है तथा साधना करने योग्य गणधरवलययन्त्रपट्ट का विवरण भी प्रस्तुत किया गया है। सूरिमन्त्रनित्यकर्म सूरिमन्त्रनित्यकर्म नामक यह कृति मलधारीगच्छीय राजशेखरसूरि की है। यह कृति संस्कृत गद्य में निबद्ध है। किन्तु बीच में पाँच पद्य प्राकृत के हैं। इस कृ ति में मलधारीगच्छीय संप्रदायानुसार सूरिमन्त्र का विचार किया गया है। इसमें सूरिमन्त्र से सम्बन्धित दस द्वार कहे गये हैं प्रथम द्वार मुद्राविधि से सम्बद्ध है । इस द्वार में सत्रह प्रकार की मुद्राओं का स्वरूप दिया गया है जो सूरिमन्त्र की साधना में विशेष उपयोगी बनाती हैं। द्वितीय द्वार पहली पीठ की साधना विधि का विवेचन करता है। इस द्वार में पीठ का नाम, पीठ के लब्धिपद, लब्धिपदों के अक्षर, प्रथमपीठ की अधिष्ठात्री देवी का नाम, तपसाधना की विधि, आसन- दिशा आदि का वर्णन किया गया है। तृतीय द्वार दूसरे पीठ की साधना विधि का प्रतिपादन करता है । इस द्वार का प्रतिपादित विषय पूर्ववत् जानना चाहिए किन्तु पीठनाम, लब्धिपद, देवी नाम आदि को लेकर अवश्य अन्तर है। चतुर्थ द्वार तीसरी पीठ की साधना विधि का विवरण प्रस्तुत करता है । इस द्वार के अन्तर्गत तीसरी पीठ की साधना के लब्धिपद, जापसंख्या, आसन-दिशा आदि का निर्देश किया गया है। पंचम द्वार में चौथी पीठ की साधना विधि कही गई है । षष्टम द्वार में पाँचवी पीठ की साधना विधि निरूपित है। सप्तम द्वार पाँचपीठ से युक्त सूरिमन्त्र की साधना विधि से सम्बन्धित है। अष्टम द्वार में देवी देवताओं को आमन्त्रित करने की विस्तृत विधि कही गई हैं। साथ ही इसमें बीस प्रकार के विधान बताये गये हैं जो देवी-देवताओं को आमन्त्रित Jain Education International --- For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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