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562/मंत्र, तंत्र, विद्या सम्बन्धी साहित्य
विद्यानुवाद
जिनरत्नकोश में विद्यानुवाद के नाम से अन्य दो ग्रन्थों का निर्देश हैं। इसमें एक विद्यानुवाद के कर्ता मल्लिषेण उल्लिखित हैं। चन्द्रप्रभ जैन मंदिर भूलेश्वर बम्बई, पद्मराग जैन व्यक्तिगत भंडार मैसूर तथा श्रवणबेलगोला के भट्टारकजी के निजी भण्डार की सूचियों में इसका उल्लेख मिलता है।
उसमें दूसरा विद्यानुवाद नाम का ग्रन्थ इन्द्रनन्दि गुरु द्वारा विरचित बताया गया है। इसका निर्देश भी पद्मराग जैन, मैसूर के निजी भण्डार की सूची में उल्लिखित है। जहाँ तक जानकारी है, ये ग्रन्थ अभी तक अप्रकाशित हैं। अतः इनके संबंध में अधिक जानकारी दे पाना सम्भव नहीं है। किन्तु इतना निश्चित है कि इन कृतियों में मंत्र-तंत्र विषयक साधना की विधियाँ अवश्य हैं। विद्यानुवाद
यह विविध यंत्र, मंत्र एवं तंत्र की संग्रहात्मक कृति है। यह संग्रह सुकुमारसेन नामक किसी भट्टारक ने किया है। इसमें 'विज्जाणुवाय' पूर्व में से अवतरण दिये गये हैं। इस संग्रह में कहा है कि ऋषभ आदि चौबीस तीर्थंकरों की एक-एक शासनदेवी के सम्बन्ध में एक-एक कल्प की रचना की गई थी। सुकुमारसेन ने अम्बिकाकल्प, चक्रेश्वरीकल्प, ज्वालामालिनीकल्प और भैरवपद्मावतीकल्प ये चार कल्प देखे थे।' विद्यानुवाद
भैरवपद्मावतीकल्प की भूमिका में पं. चन्द्रशेखर शास्त्री ने विद्यानुवाद का निर्देश किया है। पं. चन्द्रशेखर शास्त्री के अनुसार इसके संग्रह कर्ता भट्टारक कुमारसेन है। इस कृति में विविध मंत्रों एवं यंत्रों का संग्रह है साथ ही उन मंत्रों
और यंत्रों की साधनाविधि भी उल्लिखित है। सामान्यतया इसमें तेईस परिच्छेद हैं - १. मन्त्रलक्षण २. विधिमंत्र ३. लक्ष्म ४. सर्वपरिभाष ५. सामान्य मंत्र साधन ६. सामान्य यन्त्र ७. गर्भोत्पत्ति विधान ८. बालचिकित्सा ६. ग्रहोपसंग्रह १०. विषहरण ११. फणितंत्र मण्डल्याद्य १२. पनयोरूजांशमनं १३-१५. कृते खग्वद्योवधः १६. विधान उच्चाटन १७. विद्वेषन १८. स्तम्भन १६. शान्ति २०. पुष्टि २१. वश्य २२. आकर्षण २३. मर्म आदि।
' यह परिचय ‘भैरवपद्मावतीकल्प' की प्रस्तावना (पृ. ८) के आधार पर दिया गया है।
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