SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 585
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/555 दिये गये हैं जो श्री सीमंधरस्वामी के द्वारा प्रणीत हैं, अम्बिकादेवी के द्वारा श्रीमानदेवसूरि को उपदिष्ट किये गये हैं और विजयानन्दसूरि के द्वारा लिखे गये हैं। तीसरे परिशिष्ट में सूरिमन्त्र के स्मरण करने की विधि प्रतिपादित है। इस परिशिष्ट में जो सरिमन्त्र दिया गया है वह राजगच्छीय श्री हंसराजसरि के पट्टपर आसीन श्री विजयप्रभसूरि के गुरुक्रम से आया हुआ सूरीश्वरों का मन्त्र है। इस मन्त्र का प्रतिदिन चौबीस बार स्मरण करना चाहिए ऐसा निर्देश है। चौथे परिशिष्ट में गणधरवलय सम्बन्धी लब्धिपदों का वर्णन है। पाँचवें परिशिष्ट में देवतावसरविधि दी गई है जिसमें जाप अनुष्ठान विधि के बीस चरणों का उल्लेख हुआ है। यह विधि जिनप्रभसूरि रचित है। छठे परिशिष्ट में प्राकत की बीस गाथाओं में गम्फित 'श्री सरिमंत्र की स्तुति' दी गई है। साँतवें परिशिष्ट में श्रीउद्योतनसूरि विरचित 'प्रवचनमंगल सारस्तव' दिया गया है जो प्राकृत पद्य में निबद्ध तेईस गाथाओं से युक्त है। इस स्तोत्र के सम्बन्ध में ऐसा निर्देश दिया गया हैं कि सूरिमन्त्र के आराधक आचार्य को, सूरिमन्त्र की साधना के अवसर पर स्वहित और परहित के लिए इस स्तव का उभयसन्ध्याओं मे पाठ करना चाहिये। आठवें परिशिष्ट में श्रीमानदेवसूरि विरचित 'श्रीसूरिमंत्र की स्तुति' दी गई है जो प्राकृत की इक्कीस गाथाओं में रचित हैं और तीन वाचना से युक्त हैं। नौवें परिशिष्ट में श्री पूर्णचन्द्रसूरि विरचित 'श्री. सूरिविद्यागर्भितलब्धिस्तोत्र' दिया गया है वह प्राकृत पद्य पन्द्रह गाथाओं में लिखा गया है। दशवें परिशिष्ट में 'श्रीसंतिकरस्तवन' का उल्लेख है जिसमें पाँच पीठ के अधिष्ठायक देव-देवियों के नाम हैं यह रचना मुनिसुन्दरसूरि की है तथा प्राकृत की चौदह गाथाओं में रचित है। ग्यारहवें परिशिष्ट में सूरिमन्त्र के अधिष्ठायक 'श्री गौतमगणधर' सम्बन्धी तीन स्तोत्र दिये गये हैं जो प्राकृत पद्य में रचित हैं तीनों ही आठ-आठ गाथाओं से युक्त हैं और मुनिसुन्दसूरि द्वारा निर्मित है। बारहवें परिशिष्ट में मुनिसुन्दसरि रचित 'श्री गौतमस्तोत्र' संग्रहित है यह संस्क त पद्य में पच्चीस श्लोक से युक्त है। तेरहवें परिशिष्ट में सरिमन्त्र का स्तोत्र दिया गया है जो अज्ञातकर्तृक है। चौदहवें परिशिष्ट में 'श्री मन्त्राधिराजगर्भित श्री गौतमस्वामी का स्तवन' वर्णित है जो अज्ञातकर्तृक है। वह संस्कृत पद्य के सोलह श्लोकों में निबद्ध किया गया है। पन्द्रहवें परिशिष्ट में ‘परमेष्ठिसूरि का यन्त्र' दिया गया हैं यह संस्कृत के छिहत्तर (७६) श्लोकों में निबद्ध है। सोलहवें परिशिष्ट में सिंहतिलकसरिरचित 'लघुनमस्कारचक्र' दिया गया है यह संस्कृत के एक सौ पन्द्रह श्लोकों में लिखा हुआ है। सतरहवें परिशिष्ट में 'ऋषिमण्डलस्तवयन्त्रालेखनम्' का वर्णन है यह भी सिंहतिलकसूरि की रचना है और संस्कृत के छत्तीस श्लोकों में गूंथा हुआ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy