________________
554 / मंत्र, तंत्र, विद्या सम्बन्धी साहित्य
निरूपित की गई है। तदनन्तर सोलह स्तुति पदों से युक्त छः प्रस्थानवाले सूरिमन्त्र पर विचार किया गया है। उसके बाद पूर्णचन्द्र आचार्य की आम्नायानुसार इगतीस लब्धिपद से युक्त तथा अन्य आम्नाय के उनचालीस लब्धिपद से युक्त सूरिमन्त्र पर प्रकाश डाला गया है। उक्त दोनों प्रकार के सूरिमन्त्र को तेरह मेरुवाला कहा गया है। साथ ही सूरिमन्त्र के पाँच प्रस्थान बतलाये गये हैं पांचों प्रस्थानों की 1. सम्यक् विधि भी कही गई हैं। उसके पश्चात् ह्रींकार का स्वरूप उसकी जाप विधि एवं उसका माहात्म्य प्रगट किया गया है।
.
इसी क्रम में बारह लब्धिपद से युक्त तेरह मेरु वाले सूरिमन्त्र पर सामान्य विचार किया गया है। उसके बाद सोलह स्तुति पद वाले छः मेरु एवं कूटाक्षर से युक्त सूरिमन्त्र का उल्लेख किया गया है। फिर ऊँकार - ड्रींकार और ग्रहादिशान्ति का विचार किया गया है। उसके बाद मायाबीज का विचार, अहं आकार का रहस्य, चक्रादि पीठ चतुष्क का विचार, जाप का माहात्म्य, यन्त्र लेखन के प्रकार, बताये गये हैं। तत्पश्चात् सोलह लब्धिपद और छ: मेरु से युक्त सूरिमन्त्र का विवेचन किया गया है। इसी क्रम में शान्ति का विचार और उसकी विधि बतायी गयी है। सूरिमन्त्र की महिमा का वर्णन किया गया है। नित्य पूजन विधि निर्दिष्ट की गई है। अक्ष पर विचार किया गया वासचूर्ण को मंत्रित करने की मुद्राओं पर प्रकाश डाला गया हैं।
उपर्युक्त प्रवेचन से यह ज्ञात होता है कि प्रस्तुत ग्रन्थ में अनेक आम्नायों के अनुसार सूरिमन्त्र की साधना विधि कही गई हैं। इस कृति में उल्लिखित सूरिमन्त्र साधना की विधियाँ वर्तमान में प्रचलित हैं या नहीं, यह एक विचारणीय विषय है ? परन्तु यह निश्चित है कि सूरिमन्त्र के सम्बन्ध में पूर्वाचार्यों के अपने-अपने विचार रहे हैं साथ ही उनकी अपनी परम्परा रही हैं।
सूरिमन्त्र की तथा अन्त में
मन्त्रराजरहस्यम् का अन्य संस्करण
मन्त्रराजरहस्यम् का एक अमूल्य संस्करण भी हमें देखने को मिला हैं वह मुनि जिनविजयजी द्वारा संपादित, भारतीय विद्या भवन, मुंबई से प्रकाशित, तथा सत्रह परिशिष्टों से युक्त हैं।
इस ग्रन्थ की विषय वस्तु का उल्लेख तो पूर्व में कर चुके हैं यहाँ इस संस्करण के सत्रह परिशिष्टों का सामान्य परिचय कराना आवश्यक प्रतीत होता है। वह इस प्रकार है
पहले परिशिष्ट में मन्त्रराजरहस्यगत मन्त्रोद्धार और सूरिमन्त्र के ग्यारह आम्नाय सम्बन्धी लब्धिपद एवं उनकी आम्नाय के अनुसार सूरिमन्त्र की साधना विधि का विवेचन किया गया है। दूसरे परिशिष्ट में पाँच पीठ की साधनाविधि के लब्धिपद
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org