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जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास / 545
चौथे अधिकार का नाम 'द्वादशरंजिका मन्त्रोद्धार' है । इस अध्याय के प्रारम्भ में 'क्लीं' रंजिकायंत्र बनाने की विधि निर्दिष्ट है। इसके अनन्तर रंजिकायंत्र के ह्रीँ, हुँ, य, यः, ह, फट्, म, ई, क्षवषट्, ल और श्रीं इन ग्यारह भेदों का उल्लेख किया है। इन यंत्रों में से प्रत्येक यंत्र अनुक्रमशः स्त्री को मोह-मुग्ध बनाने वाला, स्त्री को आकर्षित करने वाला, शत्रु का प्रतिषेध करने वाला, परस्पर विद्वेष का उपशमन करने वाला, शत्रु के कुल का उच्चाटन करने वाला, शत्रु को पृथ्वी पर कौएँ की तरह घुमाने वाला, शत्रु का निग्रह करने वाला, स्त्री को वश में करने वाला, स्त्री को सौभाग्य प्रदान करने वाला, क्रोधादि का स्तम्भन करने वाला और ग्रह आदि से रक्षण करने वाला हैं। इसमें कौए के पंख, मृत्यु को प्राप्त प्राणियों की हड्डियों एवं रासभ रक्त से यन्त्र आलेखन का भी वर्णन है।
पाँचवा अधिकार ' क्रोधादिस्तंभनयंत्र' नाम का है। इस अधिकार में वाणी, क्रोध, जल, अग्नि, तुला, सर्प, पक्षी, गति, सेना, जीभ एवं शत्रु आदि के स्तम्भन की विधि निरूपित की गई है। साथ ही वार्ताली मन्त्र - यन्त्र एवं कोरण्टक वृक्ष की लेखनी का उल्लेख है।
छठे अधिकार का नाम 'अंगनाकर्षण' है। इसमें अभीष्ट स्त्री के आकर्षण के छः उपाय बतलाये गये हैं। सातवाँ अधिकार ' वशीकरणयंत्र' नाम का है । इस अधिकार में दाहज्वर की शान्ति का, मंत्र की साधना का, तीन लोक के प्राणियों को वश में करने का, मनुष्यों को क्षुब्ध करने का, चोर, शत्रु और हिंसक प्राणियों से निर्भय बनने का, लोगों को असमय में निद्राधीन करने का, विधवाओं को क्षुब्ध करने का, कामदेव के समान बनने का, स्त्री को आकर्षित करने का, उष्ण ज्वर दूर करने का और वर दात्रीयक्षिणी को वश में करने के उपाय बतलाये हैं। पारस्परिक वैरभाव के विनाश और शत्रु के विनाश के उपाय भी बतलाये गये हैं, साथ ही होमविधि भी चर्चित है।
आठवाँ अधिकार ‘दर्पणादि निमित्त' नाम वाला है । इस अधिकार में दर्पण मंत्र एवं कर्ण पिशाचिनी मंत्र को सिद्ध करने की विधि का उल्लेख है, साथ ही इसमें अंगुष्ठ निमित्त, दीप निमित्त और सुन्दरी नाम की देवी को सिद्ध करने की विधि भी वर्णित है। सार्वभौम राजा, पर्वत, नदी, ग्रह इत्यादि के नाम से शुभ-अशुभ फल के कथन के लिए किस तरह गिनती करनी चाहिए यह भी इसमें कहा गया है और भी मृत्यु, जय, पराजय, एवं गर्भिर्णी को होने वाली संतान 'पुत्र है या पुत्री' इत्यादि कई बातें उल्लिखित की है।
नवमाँ अधिकार ‘स्त्रयादिवश्यौषध' नामक है अर्थात् स्त्री आदि को वश करने वाली औषधियों से सम्बन्धित है। इस अधिकार में मनुष्य एवं स्त्रियों को वश में
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