________________
540/मंत्र, तंत्र, विद्या सम्बन्धी साहित्य
विद्युत, पानी, अग्नि, राजा, हिंसक, पशु, चोर, शत्रु और मिरगी का भय नहीं सताता है।
इससे सम्बन्धित एक मंत्र प्रधान गाथा भी इसमें कही गई है उसके संदर्भ में कहा है कि इस गाथा को चंदन, कर्पूर युक्त लींपी गई भूमि पर या स्थित काष्ठपट्ट पर लिखनी चाहिए। उसके नीचे अरिहंतादि पाँच पदों का तिलक-चिह्म करके नमस्कारमंत्र का स्मरण करना चाहिए। उसके पश्चात् उल्लिखित 'थंभेइ' गाथा का प्रतिदिन १०८ बार अक्षत प्रदान पूर्वक इक्कीस दिन तक जाप करना चाहिए। इससे उक्त भयादि का प्रकोप नहीं होता है।
इस प्रकार इस स्तोत्र में पंचनमस्कार की उपासना पद्धति का सुस्पष्ट निरूपण हुआ है अंततः रचनाकार ने अपनी आम्नाय का सूचन भी किया है। पंचनमस्कृतिदीपक
पंचनमस्कृतिदीपक नामक यह कृति दिगम्बर परम्परा के भट्टारक कवि श्रीसिंहनंदि की है। यह संस्कृत पद्य के ४३ श्लोकों में निबद्ध है। इसका रचनाकाल १८ वीं शती का पूर्वार्ध है। इस ग्रन्थ के प्रारम्भिक तीन पद्यों में तीर्थकर परमात्मा एवं परमेष्ठीमंत्र को नमस्कार करके उसका 'कल्प' कहने की प्रतिज्ञा की गई है। इसके साथ ही इसमें एक विशिष्ट सूचन यह किया गया है कि यह कल्प अयोग्य को नहीं देना चाहिए और मिथ्यादृष्टि को तो देना ही नहीं चाहिए।
इस ग्रन्थ में नमस्कारमंत्र विषयक पाँच अधिकारों का निरूपण किया गया है १. साधनाविधि-अधिकार २. ध्यानविधि-अधिकार ३. कर्मविधि-अधिकार ४. स्तव- अधिकार और ५. फल-अधिकार। प्रत्येक अधिकार में मन्त्रविषयक अनेक सूचनाएँ दी गई है।
प्रस्तुत कृति के १-७ पद्य तक मंगलाचरण, ग्रन्थ का प्रयोजन एवं मंत्र की सर्वोत्कृष्टता बतायी गई है। ८-१३ पद्य तक अनेक यंत्रों के नाम दिये गये हैं
और यह कहा गया है कि ये सभी यंत्र परमेष्ठीमंत्र को सिद्ध किये बिना साधित नहीं होते हैं। १४-१७ पद्य तक परमेष्ठीमंत्र का माहात्म्य बताया गया है। १८-२० पद्य तक परमेष्ठी मंत्र की आराधना एवं उसकी महिमा का वर्णन हैं। २१-३४ पद्य तक परमेष्ठी मंत्र की साधना विधि का उल्लेख है इसमें क्रमशः साधना योग्य दिशा-आसन-मुद्रा-काल-क्षेत्र- द्रव्य-भाव-पल्लव-कर्म-गुण-सामान्य-विशेष इत्यादि पूजाविधि एवं जापविधि की चर्चा की गई है। ३५-४३ पद्य तक नमस्कारमंत्र की महिमा, मंत्र का न्यास, मंत्र की स्तुति एवं मंत्र के फल का निर्देश किया गया है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org