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________________ 532/मंत्र, तंत्र, विद्या सम्बन्धी साहित्य दुर्गपदविवरण __ यह कृति देवाचार्यगच्छीय अज्ञातसरि के शिष्य लवलव के द्वारा रची गई है। यह मुख्यतः संस्कृत गद्य में २३८ श्लोक परिमाण से युक्त है। यह रचना सूरिमन्त्र की साधना विधि से सम्बन्धित है और सूरिविद्याकल्पसंग्रह के आधार पर लिखी गयी है।' इस कृति के प्रारम्भ में नमस्कार एवं कृति परिचय रूप तीन गाथाएँ दी गई है। उसमें गीतार्थ आचार्यों को नमस्कार किया गया है और कहा गया है कि इस कृति में जो कुछ लिखा जा रहा है वह न तो गुरुवचन से सुना हुआ है और न ही कहीं विस्तार से देखा गया है उपदेश के द्वारा जो उपलब्ध हुआ है उसका ही वर्णन करने की प्रतिज्ञा है। उसके बाद सूरिमन्त्र के पदों में गर्भित आठ प्रकार की विद्याएँ एवं उनकी साधना विधि का विवेचन है। तदनन्तर पाँच पीठ का स्वरूप एवं उसकी साधना विधि का निरूपण किया गया है। तत्पश्चात् मन्त्रराज के ध्यान फल का वर्णन है। उसके बाद यह बताया गया है कि सूरिमन्त्र के कई पद गुप्त रखने योग्य हैं। पूर्व में इस मन्त्र की संख्या तीन सौ श्लोक परिमाण थी। जब यह मंत्र गौतमस्वामी को दिया गया था तब बत्तीस श्लोक परिमाण था और एक सौ आठ विद्याओं से गर्भित था, अब यह मन्त्र आठ विद्याओं से युक्त रह गया है। पाँच पीठ का न्यास व्यवहार मात्र से है तत्त्वतः वैसा नहीं है। अन्त में चार जाति के मन्त्रों का उल्लेख करते हुए निर्देश दिया गया है कि साधक को इन चार प्रकारों से युक्त मन्त्रराज का ध्यान करना चाहिए। देवतावसरविधि यह कृति खरतरगच्छीय आचार्य जिनप्रभ की सूरिमन्त्र जाप साधना से सम्बन्धित है। इस कृति में मन्त्रों की बहुलता है। यह संस्कृत गद्य में रचित है। इस कृति का रचनाकाल १४ वीं शती का उत्तरार्ध माना गया है। इसमें मुख्य रूप से बीस द्वार कहे गये हैं जो जप अनुष्ठान के लिए चरण रूप हैं। इनमें से कुछ चरण जप साधना के पूर्व और कुछ चरण जप साधना के पश्चात् सम्पन्न किये जाते हैं। इस कृति का अध्ययन करने से यह सिद्ध होता है कि जप साधना की सफलता के लिए ये बीस चरण अत्यन्त आवश्यक है। ' देखें, जिनरत्नकोश पृ. ४५१ इसमें यह कृति देवाचार्य गच्छ के आचार्य विरचित बतलायी है। यह कृति जैन साहित्य विकास मण्डल, मुंबई से वि.सं. २०२४ में 'सूरिमन्त्रकल्प समुच्चय' भा. १ के साथ प्रकाशित हुई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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