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________________ 530 / मंत्र, तंत्र, विद्या सम्बन्धी साहित्य जपयोग यह एक संकलित की गई हिन्दी रचना है यह रचना मुख्यतया जाप योग से सम्बन्धित है। इस प्रति में तीन प्रकार के जाप एवं उनकी विधियाँ बतलाई गई हैं। ' इस पुस्तक की प्रस्तावना में यह कहा गया है कि इस प्रति का मूल पैसंठिया यंत्र है। इस यंत्र में से किसी विज्ञ ने पच्चीस यंत्र बनाये थे। यद्यपि किसी ने इन्हें अनानुपूर्वी के रूप में गिनाये नहीं हैं, किन्तु कच्छ (वागड़ ) भीमासर के निवासी नवकार मंत्र के परम उपासक कविरत्न श्री नारणभाईचत्रभुज को चिन्तन करने पर ऐसा लगा कि यह अनानुपूर्वी ही है। अतः उन्होंने अपनी बुद्धि से उन पच्चीस यंत्रों के माध्यम से दूसरे अनेक नये यंत्र बनाये। इन सब यंत्रों की विशेषता यह है कि उनको हर बाजु से गिनने पर पैंसठ का ही जोड़ आता है । इन यंत्रों के माध्यम से नमस्कारमंत्र के पाँच पद, चौबीस तीर्थंकर और सिद्ध भगवान का जाप हो सकता है। इस प्रकार प्रस्तुत पुस्तिका में तीन प्रकार के जाप करने की विधि दिखाई गई हैं। पुनश्च तीन प्रकार के जाप ये हैं 9. पंचपरमेष्ठी - जाप विधि २. चौबीसतीर्थंकर - जाप विधि ३. सिद्धपरमात्मा - जाप विधि इस कृति में जपविधि के साथ-साथ जाप के यन्त्र, जाप से सम्बन्धित चौवीस तीर्थंकरों के चित्र भी दिये गये हैं। जिनपंजरस्तोत्रम् इस स्तोत्र के कर्त्ता रुद्रपल्लीय शाखा के देवप्रभाचार्य के शिष्य श्री कमलप्रभ- सूरि है। यह संस्कृत के पच्चीस पद्यों में निबद्ध एक प्रसिद्ध कृति है। इस स्तोत्र के प्रारम्भ में जिनपंजरस्तोत्र की साधना विधि का निर्देश है। इसमें लिखा है कि जो मनुष्य एकासना अथवा उपवास करके त्रिकाल इस स्तोत्र का स्मरण करता है वह निश्चयपूर्वक सर्व प्रकार के मनोवांछित फल को प्राप्त करता है। इसमें यह भी कहा गया है कि इस स्तोत्र की साधना क्रोध और लोभ से रहित होकर भूशय्या और ब्रह्मचर्य के पालन पूर्वक करनी चाहिए। जो साधक नियमित रूप से इस स्तोत्र की साधना करता है वह छः महिने में वांछित फल प्राप्त कर लेता हैं। - तदनन्तर शरीर के कौन-कौन से अंगों पर पंच परमेष्ठी एवं चौबीस तीर्थंकरों का न्यास करना चाहिए उसकी विधि तथा न्यास के फल का निरूपण किया गया है। वस्तुतः यह स्तोत्र शरीर रक्षाकवच और आत्म रक्षाकवच का विधान प्रस्तुत करता है। 9 यह पुस्तक सन् १६६४ श्री महावीर जैन कल्याणक संघ, मद्रास से प्रकाशित है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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