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________________ 528 / मंत्र, तंत्र, विद्या सम्बन्धी साहित्य ति में प्रत्येक श्लोक के मंत्र का और उसकी साधना-विधि का वर्णन किया गया है । जैसा कि पहला श्लोक अभीप्सित कार्य को सिद्ध करने वाला है, तीसरा श्लोक जलभय का निवारक है, छठा श्लोक सन्तान - सम्पत्ति का प्रसाधक है, नौवा श्लोक सर्प-बिच्छु के विष का विनाशक है, १० वॉ तस्कर भय को दूर करने वाला है, १२ वाँ अग्निभय का विनाशक है, १६ वाँ नेत्ररोग को दूर करने वाला है, २३ वाँ राज्य सन्मानदायक है, २५ वाँ असाध्यरोग को शान्त करने वाला है, २६ वाँ वचनसिद्धि देने वाला है, २८ वाँ यशःकीर्ति प्रसारक है, ३० वाँ असंभव कार्य को सिद्ध करने वाला है, ३३ वाँ उल्कापात - अतिवृष्टि - अनावृष्टि का निरोधक है, ३४ वाँ भूत-पिशाच पीड़ा का नाशक है, ३८ वाँ असह्यकष्ट का निवारक है, ३६ वाँ सभी प्रकार के ज्वर को शान्त करने वाला है, ४१ वाँ शत्रु के अस्त्र-शस्त्रादि का विघातक है, ४३ वाँ बन्धनमोचक एवं वैभववर्द्धक है। जो साधक जिस कार्य को सिद्ध करना चाहता है वह उस श्लोक रूप मन्त्र का विधिपूर्वक जाप करेंनिःसंदेह कार्य सिद्धि होती है । आजकल इस प्रकार के स्तोत्रों का प्रभाव दिखाने के लिए उस नाम के महापूजन होने लगे हैं। दिगम्बर परम्परा इसको कुमुदचन्द्र की कृति मानती है। यहाँ ज्ञातव्य है कि प्रस्तुत पुस्तक में दो प्रकार की साधनाविधि दी गई है। प्रथम प्रकार की साधनाविधि प्रत्येक श्लोक के नीचे वर्णित है और द्वितीय प्रकार की साधनाविधि ऋद्धि-मन्त्र- गुण - फल एवं यंत्राकृतियों सहित प्रस्तुत की गई है। संक्षेपतः यह कृति शारीरिक-आर्थिक-मानसिक-आध्यात्मिक सभी दृष्टियों से उपासना एवं आराधना करने योग्य है। कोकशास्त्र इस कृति की रचना सन् १५६६ में हुई है तथा तपागच्छ की कमलकलश शाखा के नर्बुदाचार्य ने की है। इस कृति में मंत्र-तंत्र संबंधी विपुल सामग्री संचित हैं। इसमें चार प्रकार की स्त्रियों को वश में करने से संबंधित विभिन्न मंत्रों और तंत्रो के उल्लेख भी हैं। इस कृति में यह भी बताया गया है कि कौन सी स्त्री किस प्रकार की मांत्रिक एवं तांत्रिक साधना से वशीभूत होती है। इस कृति का अवलोकन करने से यह पता लगता है कि निवृत्तिमार्गी जैन धर्म मंत्र-तंत्र की साधना विधियों से प्रभावित होकर किस प्रकार लौकिक एषणाओं की पूर्ति हेतु अग्रसर हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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