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________________ 524 / मंत्र, तंत्र, विद्या सम्बन्धी साहित्य उवसग्गहरं स्तोत्र जैन परम्परा में आराधना - उपासना की दृष्टि से इस स्तोत्र का महत्त्व बहुत अधिक है। परम्परागत मान्यता है कि मूलतः यह स्तोत्र प्राकृत के सत्ताईस पद्यों में रचा गया था, किन्तु कारण विशेष से वर्तमान में पाँच गाथाएँ ही अधिक प्रचलित है। इसके रचयिता भद्रबाहुस्वामी (द्वितीय) है। इसका रचनाकाल लगभग छठी शती है। इस स्तोत्र में प्रभु पार्श्वनाथ और उनके यक्ष पार्श्व की स्तुति की गई है और उनसे ज्वर आदि रोग तथा सर्प दंश आदि की पीड़ाओं से मुक्त करने की प्रार्थना की गयी है। इसकी प्रत्येक गाथा मंत्र - यंत्र से समन्वित है अतः इस स्तोत्र की अनेक आवृत्तियाँ मंत्र - यंत्र एवं साधनाविधि से सम्बन्धित प्रकाशित हो चुकी हैं। निःसन्देह जैन मंत्र साहित्य में इस लघु कृति का विशिष्ट स्थान है। ऊँकारविद्यास्तवनम् यह स्तोत्र ‘पंचनमस्कृतिदीपक' नामक ग्रन्थ में संग्रहीत है । उसमें इस स्तोत्र का समंतभद्र (दिगंबर जैनाचार्य ) की कृति के रूप में उल्लेख हुआ है। यह स्तोत्र ‘नमस्कार स्वाध्याय' भा. २ में भी संकलित है। इसकी भाषा प्राकृत है। इसमें कुल १२ गाथाएँ हैं। मूलतः यह स्तोत्र ऊँकार विधि से सम्बन्धित है। इस कृ ति में ‘ऊँकार ध्यान-विधि' के साथ- साथ ऊँकार का विधिपूर्वक ध्यान करने से प्राप्त होने वाले लाभ तथा उसका माहात्म्य बताया गया है। इसमें ऊँकार के विषय में लिखा है कि यह ऊँकार 'अ + अ + आ+उ+म्' इन वर्गों के योग से बना है। ऊँकार का ध्यान पीतवर्ण, श्वेतवर्ण, रक्तवर्ण, हरितवर्ण अथवा कृष्णवर्ण में करना चाहिए। यह ऊँकार तीन भुवन का स्वामी है। यह ऊँकार 'ह्रीं' की आदि में है । यह पंचपरमेष्ठी का वाचक है। अतः समस्त मंत्रों का साररूप तत्त्व है। ऊँकार का जाप अथवा चिंतन करने से कर्म-रज का नाश होता है। आत्मा निर्मल बनती है और स्वानुभव होने लगता है । ऊँकार की ध्यानविधि के सन्दर्भ में चर्चा करते हुए यह बताया गया है कि ऊँकार का श्वेतवर्ण पूर्वक ध्यान करने से शांति, तुष्टि, पुष्टि होती है, पीतवर्ण द्वारा ध्यान करने से लक्ष्मी प्राप्त होती है, लालवर्ण द्वारा ध्यान करने से वशीकरण शक्ति प्रगट होती है, कृष्णवर्ण द्वारा ध्यान करने से शत्रु का क्षय होता है और हरितवर्ण द्वारा ध्यान करने से स्तम्भन विद्या प्राप्त होती है। १ यह कृति वि. सं. २०१६ में 'जैन साहित्य विकास मण्डल, मुंबई' से प्रकाशित है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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