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जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/523
अध्याय ११ मंत्र-तंत्र-विद्या सम्बन्धी विधि-विधानपरक साहित्य
अनुभवसिद्धमंत्रद्वात्रिंशिका
यह रचना भद्रगुप्ताचार्य की है। इस कृति का निर्माण कब हुआ, इस संबंध में हमें कोई सूचना उपलब्ध नहीं हुई है। सामान्यतया प्रस्तुत कृति में पाँच अधिकार हैं- प्रथम अधिकार में सर्वज्ञाभमन्त्र 'ॐ श्री ही अहं नमः' और सर्वकर्मकरमन्त्र 'ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमः' इन दोनों मन्त्रों की ध्यान विधि बतायी गयी है। द्वितीय अधिकार में वशीकरण एवं आकर्षण सम्बन्धी मंत्र का वर्णन है। तृतीय अधिकार में स्तम्भनादि से सम्बन्धित मंत्रों एवं स्तोत्रों का निरूपण हैं। चतुर्थ अधिकार में शुभाशुभसूचक और तत्काल- फलदायी आठ मंत्रों का समावेश है। पंचम अधिकार में गुरु-शिष्य की योग्यता एवं अयोग्यता का निरूपण हैं। इस कृ ति को पंडित अम्बालाल प्रेमचन्द शाह ने सम्पादित करके प्रकाशित करवाया है। अचलगच्छीयआम्नायसूरिमन्त्र
यह एक संक्षिप्त कृति है। यह प्राकृत एवं संस्कृत मिश्रित गद्य में है। इसमें अचलगच्छ के आम्नायानुसार सूरिमन्त्र के अतिरिक्त वाचनाचार्यपदस्थापना, उपाध्याय- पदस्थापना एवं प्रवर्तिनीपदस्थापना के मंत्र संग्रहीत है।
यह कृति सूरिमन्त्रकल्प भाग २, पृ. २१७ से २२० में प्रकाशित है। अद्भुतपद्मावतीकल्प
इस कृति की रचना श्वेताम्बर परम्परा के उपाध्याय यशोभद्र के शिष्य चन्द्रमुनि ने की है। इसकी प्रकाशित कृति के आधार पर इसमें छः प्रकरण हैं। इनमें से प्रथम दो अनुपलब्ध हैं। तीसरा प्रकरण सकलीकरण विधान का है और इसमें सत्रह पद्य हैं। चौथे प्रकरण में देवी-अर्चन का क्रम एवं देवी यन्त्र पर प्रकाश डाला गया है इसमें छासठ पद्य हैं। पाँचवे प्रकरण में पात्रविधि लक्षण की चर्चा है और यह सत्रह पद्यों का है। इनमें से पन्द्रहवाँ पद्य त्रुटित है इसके पश्चात् गद्य भाग आता है, जिसका कुछ भाग गुजराती लिपि में है। छठा प्रकरण अठारह पद्यों में हैं और इसका नाम दोष लक्षण है। इसके पन्द्रहवें पद्य के अनन्तर बन्ध-मन्त्र, माला-मन्त्र इत्यादि विषयक गद्यात्मक भाग आता है।
' इस कृति के तीन से छह प्रकरण श्री साराभाई मणिलालनवाब द्वारा, सन् १६३७ में प्रकाशित 'भैरवफ्यावतीकल्प' के प्रथम परिशिष्ट (पृ. १-१४) में दिये हैं।
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