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512/मंत्र, तंत्र, विद्या सम्बन्धी साहित्य
विधान दिया गया है।
इस दूसरे विभाग में प्रतिष्ठा उपयोगी विधि-विधानों का संग्रह है। इसके साथ अन्य उपयोगी विधियाँ भी उल्लिखित हैं। प्रस्तुत प्रतिष्ठाकल्प का संयोजन तपागच्छीय विजयामृतसूरि ने किया है। यह गुजराती भाषा में निबद्ध है।
इस द्वितीय विभाग में कुल उन्नीस प्रकार के विधि-विधान निर्दिष्ट हैं उनका नामनिर्देश पूर्वक संक्षिप्त स्वरूप इस प्रकार है - १. अष्टादशअभिषेकबृहविधि - इस विधि के बारे में प्रस्तुत ग्रन्थ की प्रस्तावना उल्लेख करती हैं कि जैन शासन में प्रचलित विशिष्ट क्रियाकाण्डों में यह एक ऐसा विधान है जो कई बार सम्पन्न किया जाता है। यह विधान अनेक प्रतियों में मुद्रित हुआ है परंतु प्रस्तुत विधान सम्बन्धी अब तक जो प्रतियाँ प्रकाशित हुई हैं वे संक्षेप में है और केवल अभिषेकरूप है किन्तु इस विभाग में यह विधान विस्तृत एवं विशिष्ट प्रकार से दिया गया है। जिनबिंबों और पट आदि की विशुद्धि करने के लिए यह विधान विशेष उपयोगी है।
____ अंजनशलाका किये गये पूजनीय बिंबों को जब एक स्थान से दूसरे स्थान पर वाहनादि के द्वारा ले जाया गया हों, प्राचीन बिंबों का लेप करवाया गया हो, कुछ कारण विशेष से जिनबिंब अपूजनीय रहे हों, किसी प्रकार की आशातना का कारण बना हो, नये तीर्थपट बनवाये हो इत्यादि प्रसंगों पर अठारह अभिषेक विधान किया जाता है। इस विधान से दोष, अशुद्धि आदि दूर होती है और शुद्धि की वृद्धि होती है। यह विधान सम्पन्न करने के बाद उस वातावरण में अलग प्रकार का ही अनुभव होता है। जिनबिंबों का आकर्षण अपूर्व हो जाता है ये सभी बातें श्रद्धा से मानी जाय, वैसी नहीं है अपितु सकारण है। इस विधान में जिन पदार्थों का उपयोग किया जाता है वे पदार्थ वातावरण को विशुद्ध करने के लिए प्रत्येक क्षेत्र में समर्थ होते हैं इन पदार्थों की उपयोगिता आदि का वर्णन वनस्पतिशास्त्र वैद्यक ग्रन्थ आदि में विस्तार से प्राप्त होता है। प्रस्तुत विभाग में अठारह अभिषेक की विधि विस्तार से संकलित की गई है। २. ध्वजारोपणविधि ३. कलशारोपणविधि- प्रायः ये दोनों विधान साथ में किये जाते हैं। ये दोनों ही विभाग प्रचलित है तथा इन दोनों पर नगर की उन्नति का आधार टिका हुआ है। ४. नन्द्यावर्तपूजन विधि- जिन शासन में इस पूजन का माहात्म्य विशिष्ट है। अनेक विशिष्ट प्रसंगों पर यह पूजन किया जाता है। इस पूजन में मध्य में नन्द्यावर्त्त का आलेखन और उसके चारों ओर दस वलय किये जाते हैं। यहाँ यह विधान संक्षेप में कहा गया है। ५. देवीप्रतिष्ठाविधि- जिनमंदिर में शासन अधिष्ठायकादि देव-देवियों की स्थापना-प्रतिष्ठा प्रायः होती ही है, उनकी स्थापना नहीं की जाती है। उन देवी-देवताओं को पूजनीक बनाने का विशिष्ट विधान है। यही इस
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