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________________ जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/509 वैराग्य होना, लौकांतिक देवों के द्वारा स्तुति करना, दीक्षा के लिए पालकी में बैठकर वन की ओर गमन करना, दीक्षाग्रहण करना, केशलोंच करना आदि का वर्णन है। साथ ही चतुर्थ मनःपर्यवज्ञान का प्रगट होना, तिलकदान विधि, संस्कारमाला की आरोपण विधि- यहाँ ४८ संस्कारों की स्थापना की जाती हैं, मंत्रन्यासविधि, अधिवासना विधि, स्वस्तिवाचन आदि का प्रतिपादन है। चतुर्थ केवलज्ञानकल्याणक के विषय में मुखोदधान विधि, नेत्रोन्मीलन विधि, गुणों की आरोपण विधि, केवलज्ञान के समय होने वाले दसअतिशयों की स्थापनाविधि, समवसरण की स्थापनाविधि, देवकृत चौदहअतिशयों की स्थापनाविधि, आठ महाप्रातिहायों की स्थापनाविधि आदि का वर्णन है। पांचवे मोक्ष कल्याणक का वर्णन करते हुए निर्वाणस्थापना की विधि कही गई है। पंचम अध्याय- यह अध्याय ७६ श्लोकों में निबद्ध है। इसमें अभिषेकादि की विधियाँ कही गई हैं। उनमें अभिषेक विधि, देवता विसर्जन विधि, बलिविधान, इन्द्रादि को आशीर्वाद देने की विधि, यज्ञदीक्षा की विसर्जन विधि, यजमान के द्वारा क्षमापना करने की विधि, प्रतिष्ठा के अनन्तर चतुर्विध संघ का सत्कार करना, प्रतिष्ठाचार्य को भेंट देना, प्रतिष्ठा के अवसर पर आये हुए साधर्मियों का भोजन आदि से सत्कार करना, गान्धर्व, नृत्यकार आदि का भी योग्य सत्कार करना, प्रतिमा को वेदी पर विराजमान करने की विधि, मध्यम और जघन्य प्रतिष्ठा करने की विधि, जिनमंदिर पर ध्वजा चढ़ाने की विधि और जिनमंदिर एवं जिनप्रतिमा की प्रतिष्ठा का फल आदि विशेष रूप से चर्चित हुए हैं। षष्ठम अध्याय- इस अन्तिम अध्याय में ६५ श्लोक हैं। इसमें अधोलिखित विषय निरुपित हुए हैं- सिद्धप्रतिमा की प्रतिष्ठा विधि, बृहत्सिद्धचक्र का उद्धार, लघुसिद्धचक्र का उद्धार, सिद्धस्तुति का पाठ, गुणारोपण का विधान, तिलकदान आदि के विधान, अभिषेक विधि, विसर्जन विधि, आचार्य (गुरु) की प्रतिष्ठा विधि, श्रुतदेवता (सरस्वती) की प्रतिष्ठा विधि, सरस्वतीयंत्र बनाने की विधि, सरस्वतीमंत्र की जाप विधि, यक्षादि की विधि, क्षेत्रपाल वरुण आदि की प्रतिष्ठा विधि, ताम्र आदि आधि धातुओं पर खुदे हुए यंत्रों की प्रतिष्ठा विधि एवं सविधि पूर्वक की गई प्रतिष्ठा का फल इत्यादि। प्रस्तुत कृति के अन्त में परिशिष्ट भाग भी दिया गया है। उसमें श्रुत पूजा का विधान, गुरूपूजा का विधान और वसुनंदिआचार्यकृत प्रतिष्ठासारसंग्रह के उपयोगी श्लोक दिये गये हैं।' वस्तुतः यह प्रतिष्ठासारोद्धार दिगम्बर जैन परम्परा का अद्वितीय 'इस ग्रन्थ को पं. मनोहरलाल शास्त्री ने श्री जैन ग्रन्थ- उद्धारक कार्यालय से वि.सं. १६७४ में प्रकाशित किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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