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जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास / 507
प्रतिष्ठासारोद्धार
यह ग्रन्थ संस्कृत की पद्यात्मक शैली में है। इसके प्रणेता पण्डित आशाधरजी है। इस ग्रन्थ की प्रस्तावना में यह उल्लेख है कि वसुनंदिआचार्यकृत 'प्रतिष्ठासारसंग्रह ' का उद्धार करने के लिए 'प्रतिष्ठासारोद्धार' नामक यह ग्रन्थ विस्तार के साथ रचा गया है । ग्रन्थ का नाम भी वैसा ही रखा गया है। इस कृति का अपर नाम 'जिनयज्ञकल्प' है यह ग्रन्थ अपने नाम के अनुसार प्रतिष्ठाविधि का प्रतिपादन करता है। इसमें दिगम्बर परम्परा से सम्बन्धित प्रतिष्ठाविधि का विवेचन हुआ है। इस कृति की टीका हिन्दी भाषा में है। इसका रचनाकाल वि.सं. १२५० है।
यह ग्रन्थ छ: अध्यायों में विभक्त है। ग्रन्थ के प्रारम्भ में मंगलाचरण और ग्रन्थप्रतिज्ञा रूप एक श्लोक दिया गया है। अन्त में तेईस श्लोक की लम्बी प्रशस्ति कही गई है। उनमें मुख्यतः ग्रन्थरचना का स्थल - नलकच्छ ( नालछा - मालव प्रदेश) नगर बताया है, तिथि - आसोज शुक्ला प्रतिपदा (सितांत्य दिवसे?) बतायी गयी है, समय- य - वि.सं. १२५० कहा है।
प्रतिष्ठासारोद्धार की विषयवस्तु का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है
प्रथम अध्याय- इस अध्याय के अन्त में इसका नाम 'सूत्रस्थापनीय' कहा है इसमें १६१ श्लोक हैं। इसमें निर्दिष्ट विधियाँ एवं आवश्यक लक्षणादि का वर्णन निम्न प्रकार से बताया है। सर्वप्रथम जिनमंदिर एवं जीर्णमंदिर के उद्धार करवाने का फल कहा है। उसके बाद तीनों काल का शुभ-अशुभ जानने के लिए कर्णपिशाचिनीमंत्र को यंत्र सहित साधने की विधि कही है। फिर पाँच प्रकार की पूजा १. नित्यमह २. चतुर्मुख ३ रथावर्त्त ४. कल्पवृक्ष और ५. इन्द्रध्वज का नामोल्लेख करते हुए नित्यमह पूजा का स्वरूप कहा है उस अधिकार में श्रावक के लिए मन्दिर निर्माण के कृत्य प्रमुख रूप से बताये गये हैं। तदनुसार भूमिखनन विधि और शिलास्थापन विधि कही गई है । तत्पश्चात् मन्दिर निर्माण योग्य भूमि को पवित्र करने की विधि, जिनमंदिर का निर्माण कुछ शेष रहने पर शिल्पी आदि के कल्याण के लिए मनुष्याकृति रूप पुतला प्रवेश करवाने की विधि, जिनप्रतिमा का निर्माण करवाने के लिए शुभमुहूर्त में कारीगर के साथ जाकर पाषाण आदि लाने की विधि, यंत्रादि-यक्षादि की प्रतिष्ठा विधि, इन्द्र ( प्रतिष्ठाचार्य) के सत्कार करने की विधि, मंडप बनाने की विधि, वेदिका बनाने की विधि, वेदीका लिंपन करने की विधि, उत्तरवेदी की रचना विधि, उपवास आदि तप ग्रहण करने की विधि, यागमंडल की उद्धार विधि, यागमंडल की पूजा तथा जिनप्रतिमा की प्रतिष्ठा आदि करने की विधि कही गयी हैं ।
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