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________________ 506/मंत्र, तंत्र, विद्या सम्बन्धी साहित्य प्रकाशन शा. सोमचन्दभाई हरगोविन्ददास छाणी ने किया है। यह मरूगुर्जर भाषा में आलेखित है किन्तु मूलपाठ संस्कृत में हैं। इसमें प्रायः वे ही विधि-विधान उल्लिखित हैं जो प्रतिष्ठाकल्पसमुच्चय, शान्तिस्नात्रसमुच्चय प्रतिष्ठाकल्प आदि में संकलित किये गये हैं। इसमें कुल इक्कीस विधि-विधान हैं। गुरुमूर्ति की प्रतिष्ठा विधि, मंत्रपट्ट की प्रतिष्ठा विधि ऐसे कुछ विधान अन्य कृतियों में बहुत कम देखने को मिलते हैं वे इस कृति में प्रस्तुत किये गये हैं। प्रस्तुत कृति के मुख्य आवरण पर श्री नंद्यावर्त्तयंत्र दिया गया है तथा अन्तिम आवरण पर बीशस्थानकयंत्र दिया गया है। प्रतिष्ठातिलक __ इस ग्रन्थ की रचना दिगम्बर जैनाचार्य नेमिचन्द्रदेव ने विक्रम की १३ वीं शताब्दी के आसपास की है। इसमें १८ परिच्छेद हैं। इस ग्रन्थ के अन्त में ग्रन्थकर्ता की प्रशस्ति, वास्तुबलिविधान आदि दिये गये हैं। यह ग्रंथ मूलतः पूजा एवं प्रतिष्ठाविधान से संबंधित है, किन्तु प्रसंगानुकूल मंत्र एवं यंत्र का भी इसमें निर्देश है। कुछ विशिष्ट यन्त्रों के नाम यहाँ दिये जा रहे हैं - महाशान्तिपूजायन्त्र, बृहच्छान्तियन्त्र, जलयन्त्र, महायागमण्डलयन्त्र, लघुशान्तिकयन्त्र, मृत्युं- जययन्त्र, सिद्धचक्रयन्त्र, पीठयन्त्र, सारस्वतयन्त्र, निर्वाणकल्याणकयन्त्र, वश्ययन्त्र, शान्ति- यन्त्र, स्तम्भनयन्त्र, आसनपदवास्तुयन्त्र, जलाधिवासनयन्त्र, गन्धयन्त्र, अग्नित्रयहोमयन्त्र, अग्नित्रयद्वितीय प्रकार यन्त्र, अग्नित्रयहोममण्डपयन्त्र, उपपीठपदवास्तु यन्त्र, परमसामायिकपदवास्तुयन्त्र, उग्रपीठपदवास्तुयन्त्र, नवग्रहहोमकुण्डमण्डलयंत्र, स्थण्डिलपद वास्तुयन्त्र, मण्डुकपदवास्तुयंत्र आदि।। ___ इसमें सर्वप्रथम जिनेश्वर प्रभु की वंदना के साथ इन्द्रनन्दि आदि पूर्व आचार्यों का निर्देश हैं जिनकी कृतियों के आधार पर यह ग्रन्थ रचा गया है। जिन प्रतिमा के साथ-साथ यक्ष-यक्षिणी एवं धातु से निर्मित यन्त्रों की प्रतिष्ठाविधि वर्णित है। साथ ही साथ सकलीकरण, दिग्बन्धन, आहान, स्थापन, सन्निधिकरण, पूजन और विसर्जन आदि विधि-विधान भी दिये गये हैं। जिनपूजा के अतिरिक्त श्रुतपूजा, गणधरपूजा, इन्द्रपूजा, यक्ष-यक्षिणीपूजा, दिक्पालपूजा आदि का भी वर्णन है। इसके सिवाय जिनबिम्ब की सविस्तारप्रतिष्ठाविधि, मध्यमप्रतिष्ठाविधि, संक्षेपप्रतिष्ठाविधि,सिद्धप्रतिष्ठाविधि, आचार्य- प्रतिष्ठाविधान, श्रुतदेवताप्रतिष्ठाविधान, श्रुतस्कंधप्रतिष्ठाविधान, यक्ष-यक्षी प्रतिष्ठाविधान का भी उल्लेख हुआ है। २ यह ग्रन्थ दोसी सखाराम नेमचन्द्र, सोलापुर से प्रकाशित है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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