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494/मंत्र, तंत्र, विद्या सम्बन्धी साहित्य
प्रक्षेपण विधान आदि का निर्देश दिया गया है।
- इसके पश्चात् अधोलिखित विधियाँ एवं यन्त्रादि स्थापना करने का उल्लेख हैं- १. संक्षिप्त प्रतिष्ठा' विधि २. जिनबिंब परिकर प्रतिष्ठा विधि ३. कलशारोपण विधि ४. ध्वजारोपण विधि ५. ध्वजादिविषयक मंत्र ६. ध्वजादि का परिमाण और ७. चौतीस का यंत्र वह इस प्रकार है -
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इस ग्रन्थ' के परिशिष्ट भाग में निम्न पूजनों एवं विधानों में प्रयुक्त होने वाली सामग्री की सूची दी गई है। १. जलयात्रा विधान २. कुंभस्थापना विधान ३. नंद्यावर्त पूजन ४. ग्रह-दिक्पाल-अष्टमंगल पूजन ५. स्नात्र पूजा ६. सिद्धचक्र पूजन ७. बीशस्थानक पूजन ८. च्यवनकल्याणक विधान ६. जन्मकल्याणक विधान १०. विवाह उत्सव ११. प्रतिष्ठा विधान १२. ३६० कल्याणकों की सूची आदि
इस ग्रन्थ के अन्त में ग्रन्थकार ने गणरत्नाकरसरि, जगच्चन्द्रसरि, श्यामाचार्य, हरिभद्रसूरि एवं हेमचन्द्रसूरि रचित भिन्न-भिन्न प्रतिष्ठाकल्पों का आधार लेने का और विजयदानसूरि के समक्ष उनसे मिलान कर लेने का भी उल्लेख किया है। सकलचन्द्रगणि रचित अन्य कृतियाँ भी प्राप्त होती है- उनमें गणधर स्तवन, बारहभावना, मुनिशिक्षा- स्वाध्याय, मृगावतीआख्यान (वि.सं. १६४४), वासुपूज्य जिनपुण्यप्रकाशरास (सं. १६७१), और हीरविजयसूरि देशनासुरवेलि (सं. १६८२) आदि हैं।
' निर्वाणकलिका, आचारदिनकर, विधिमार्गप्रपा, तिलकाचार्य प्रतिष्ठाकल्प, गुणरत्नसूरि प्रतिष्ठाकल्प आदि के अतिरिक्त अन्य प्रतिष्ठाकल्पों के आधार पर लिखी गई विधि। ' यह कृति को गुजराती अनुवाद के साथ सोमचन्द हरगोविन्ददास और छबीलदास केसरीचन्द संघवी ने प्रकाशित किया है। इसमें जिनमुद्रा, परमेष्ठीमुद्रा, इत्यादि उन्नीस मुद्राओं के चित्र भी दिये गये हैं। पहली पट्टिका के ऊपर च्यवन एवं जन्मकल्याणकों का एक-एक चित्र है और दूसरी के ऊपर केवलज्ञानकल्याणक तथा अंजनक्रिया का एक-एक चित्र है।
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