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________________ जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास / 493 प्रतिष्ठाकल्प (अंजनशलाकाविधि) प्रतिष्ठाकल्प नामक यह ग्रन्थ तपागच्छीय विजयदानसूरि की परम्परा के अकबरप्रतिबोधक हीरविजयसूरि के शिष्य सकलचन्द्रगणि के द्वारा रचा गया है। यह कृति संस्कृत श्लोकों एवं मन्त्रों में निबद्ध है। इसकी रचना वि. सं. १६६० की मानी जाती है। प्रतिष्ठाविधि की यह अद्वितीय कृति है। इसमें सामान्यतया प्रतिष्ठाविधि से संबंधित अनेक विधियों का उल्लेख किया गया है। मुख्यतया इस ग्रन्थ में यह बताया गया है कि जिनबिम्बादि की प्रतिष्ठा के निमित्त दस दिन तक कौन-कौन से विधि-विधान, किस प्रकार से सम्पन्न किये जाने चाहिये । इस ग्रन्थ के प्रारम्भ में मंगलाचरण एवं विषयस्थापन रूप एक श्लोक दिया गया है उसमें भगवान महावीर को नमस्कार करके जिनबिम्ब की प्रतिष्ठा विधि और पूजाविधि कहने की प्रतिज्ञा की गई है। इसके अनन्तर प्रतिष्ठा करने वाले विधिकारक (श्रावक) के लक्षण, आचार्य के लक्षण, स्नात्र के प्रकार, मण्डप का स्वरूप, वेदिका का स्वरूप, वेदिका निर्माण हेतु, भूमिशोधन इत्यादि विषय निरुपित हैं साथ ही मुखशुद्धि (दातून ) इत्यादि के मंत्र भी दिये गये हैं। उसके बाद बिम्ब का संस्कार करने निमित्त एवं प्रतिष्ठादि कार्यों की सम्पन्नता हेतु दश दिन तक महोत्सव करने का निर्देश किया गया है। उन दश दिनों में किये जाने वाले विधि-विधान का भी उल्लेख किया है जो निम्नानुसार हैंप्रतिष्ठा उत्सव के पहले दिन जलयात्रा विधि और कुंभस्थापना विधि करने का कथन किया है। दूसरे दिन नंद्यावर्त्तपट्ट पूजन करने का वर्णन किया है। तीसरे दिन क्षेत्रपालदेवता, दशदिक्पालपट्ट, भैरव देवता, सोलहविद्यादेवीयों, और नवग्रहपट्ट के पूजन करने का सविधि निर्देश दिया गया है। चौथे दिन सिद्धचक्र पूजन करने की विधि उल्लेखित की है । पाँचवे दिन बीशस्थानक पूजा करने का निर्देश किया है। छठे दिन च्यवनकल्याणक की विधि, इंद्र-इंद्राणी की स्थापना, गुरु पूजन, प्राणप्रतिष्ठा इत्यादि कार्यों को सम्पन्न करने का विधान कहा गया है। सातवें दिन जन्मकल्याणक विधि, शुचिकरण विधि, सकलीकरण विधि, ५६ दिक्कुमारी उत्सव आदि कृत्य सम्पूर्ण करने चाहिए, ऐसा प्रतिपादन किया गया है। आठवें दिन अठारहअभिषेक करना चाहिए, ऐसा उल्लेख किया गया है इसके साथ उसकी विधि भी कही गई है। नौवे दिन लेखनशाला विधि, विवाह महोत्सव, दीक्षामहोत्सव आदि करने का उल्लेख किया गया है । दशवें दिन केवलज्ञानकल्याणक (अंजन विधि), निर्वाणकल्याण, जिनबिंबस्थापना, बलिमंत्रण एवं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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