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________________ जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/491 गुरुमूर्ति प्रतिष्ठा विधि यह कृति संस्कृत गद्य एवं पद्य मिश्रित भाषा में निबद्ध है।' इसमें गुरुमूर्ति की प्रतिष्ठा विधि उल्लिखित है। यहाँ गुरुमूर्ति की प्रतिष्ठा से गुरु की चरणपादुका एवं स्तूप की प्रतिष्ठा भी समझनी चाहिए। इस कृति में निर्देश है कि गुरूमूर्ति की प्रतिष्ठा करने हेतु सामान्य रूप से भूमिशुद्धि, शुभसमय, रात्रिजागरण आदि कृत्य अवश्य सम्पन्न करने चाहिए। विशेष रूप से यह विधान ऐसे चार श्रावक द्वारा सम्पन्न किया जाना चाहिए। जिनके सुपुत्रादि हों और जो धर्मादि गुणों से युक्त हों। इस प्रक्रिया में इन चार श्रावकों की मुख्य भूमिका रहती है। इसमें गुरुमूर्ति प्रतिष्ठा के पूर्व श्री शान्तिनाथ प्रभु की प्रतिमा का स्नात्रपूजन करना आवश्यक माना गया है। साथ ही गुरुमूर्ति का अभिषेक करने के लिए औषधि युक्त १०८ तीर्थों के जल का होना आवश्यक बताया गया है इसके अभाव में २१ तीर्थों का जल होना ही चाहिए- ऐसा कहा गया है। इस विधान के अन्तर्गत दशदिक्पालस्थापना एवं नवग्रहस्थापना करना भी आवश्यक बतलाया है। अभिषेक के प्रसंग में पांच प्रकार के अभिषेकों का विधान निर्दिष्ट किया है। इससे स्पष्ट होता है कि गुरुमूर्ति की प्रतिष्ठा हेतु पाँच प्रकार के अभिषेक किये जाते हैं। वे पाँच अभिषेक ये हैं - १. स्वर्णचूर्ण २. पंचरत्न ३. पंचगव्य ४. सर्वोषधि और ५. तीर्थोदक। इसमें प्रतिष्ठा के अनन्तर करने योग्य साधर्मिक वात्सल्य, धूप उत्पाटन आदि का भी वर्णन किया गया है। स्तूप (देवकुलिका) के ऊपर चन्दनादि के छीटें देने का भी उल्लेख है। गुरूमूर्ति के पादपीठ के नीचे रखने योग्य सामग्री का भी विस्तारपूर्वक प्रतिपादन किया गया है। इसके साथ ही १. आचार्यमूर्ति एवं स्तूप प्रतिष्ठा विधि २. उपाध्यायमूर्ति एवं स्तुप प्रतिष्ठा विधि ३. साधु-साध्वी की मूर्ति एवं स्तूप प्रतिष्ठा विधि भी स्व-स्वमंत्र के अनुसार विवेचित की गई हैं। अन्त में प्रतिष्ठाकारक दश दिन एकाशना करे और शीलव्रत का पालन करें- ऐसा कहा गया है। प्रस्तुत कृति के परिशिष्ट भाग में अन्य भी पूजन एवं विधान दिये गये हैं यथा - १. नवग्रहआहान एवं पूजन विधि २. दशदिक्पाल आहान एवं पूजन विधि ३. बलिबाकुला अभिमन्त्रण विधि ४. दशदिक्पाल को बलिप्रदान करने की विधि ५. दशदिक्पाल, नवग्रह एवं अष्टमंगलपट्ट विसर्जन विधि ६. वासचूर्ण अभिमन्त्रण विधि वासचूर्ण अभिमन्त्रित करने के दो प्रकार बताये गये हैं। ' यह कृति श्री जिनदत्तसूरि ज्ञान भंडार, गोपीपुरा शीतलवाडी ,सूरत में उपलब्ध है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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