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जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/473
सम्मेदशिखरविधान .
यह विधान हिन्दी पद्य में रचित है। इसमें संस्कृत मन्त्रों की बहुलता है। इसकी रचना कवि जवाहरलाल ने की है। इसमें मुख्यतः वर्तमान चौवीशी के उन बीस तीर्थंकरों की अर्ध्यपूर्वक पूजा का विधान किया गया है जो समेतशिखर तीर्थ पर निर्वाणपद को प्राप्त हुए। यह विधान प्रायोगिक रूप से करने जैसा है। पूजा के भाव पढ़ने जैसे हैं। स्नात्रपूजा कलशादि संग्रह
यह एक संकलित कृति है।' इसमें प्राकृत, संस्कृत एवं हिन्दी भाषा मिश्रित रचनाएँ हैं। इस कृति में स्नात्रपूजा के अतिरिक्त अन्य पृजाएँ भी संग्रहित की गई हैं। तीन-चार रचयिताओं की स्नात्रपूजाएँ भी दी गई हैं। यह कृति खरतरगच्छ और तपागच्छ दोनों परम्पराओं से सम्बन्धित है। इसमें कई आवश्यक विषयों का संग्रह किया गया है। इसका विषयनुक्रम इस प्रकर है - १. विधि विभाग - १. स्नात्र पूजाविधि २. अष्टप्रकारी पूजाविधि ३. सत्रहभेदी पूजाविधि ४.नवपद पूजाविधि ५. २५० अभिषेक विधि २. आरती विभाग -१. शांतिनाथप्रभु की आरती २. आदिनाथप्रभु की आरती ३. महावीरस्वामी की आरती- मंगलदीपक आदि। ३. स्नात्रपूजा विभाग -१ देवपालकविकृत- स्नात्रपूजा एवं विधि, २. आदिनाथ की जन्माभिषेक विधि, ३. कलश विधि, ४. वर्धमानस्वामी की जन्माभिषेक विधि, ५. पार्श्वनाथप्रभु की कलश विधि, ६. शांतिनाथप्रभु की कलश विधि ७. देवचन्द्रजीक त- स्नात्रपूजा एवं विधि ८. देवचन्द्रजीकृत अष्टप्रकारीपूजा एवं विधि ६. वीरविजयजीकृत स्नात्रपूजा-अष्टप्रकारी पूजा एवं विधि १०. देवविजयजीकृत अष्टप्रकारीपूजा एवं विधि ११. विजयानंद सूरिकृत स्नात्रपूजा एवं विधि १२. श्री अजितनाथप्रभु कलश विधि १३. श्री शांति स्नात्र महापूजन विधि (२७ गाथाओं एवं २७ पूजन से युक्त) १४. श्री अष्टोत्तरी स्नात्र पूजा इन पूजाओं के साथ सत्रहभेदीपूजा एवं नवपदपूजा भी वर्णित हैं। अंत में मंगलकारी स्तोत्र, स्तुति, स्तवन आदि उल्लिखित हैं।
यह पुस्तक वि.सं. १६८५ में पोपटलाल साकरचंद शाह ,भावनगर वालों ने प्रकाशित की है।
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