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________________ जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/471 शान्तिविधान राजमल पवैया द्वारा रचित यह दिगम्बर कृति हिन्दी पद्य में है। इसका अपर नाम नवदेवपूजन विधान है। दिगम्बर परम्परा अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु जिनालय, जिनबिम्ब, जिनवाणी (शास्त्र) और जिनधर्म इन नौ पद को नवदेव के रूप में स्वीकारती हैं। ये नवदेव शांतिप्रदायक और मंगलमय माने गये हैं। अतः आत्मिक शान्ति की प्राप्ति हेतु इन नवदेवों का स्तवन, पूजन, अर्चन आदि किया जाता है। हम देखते हैं कि जैन समाज में शांति की प्राप्ति हेत अनेक प्रकार के अनुष्ठानों का आयोजन किया जाता रहा है तथा आज भी शान्ति की प्राप्ति के लिए एवं अनिष्ट ग्रहों के निवारणार्थ विविध प्रकार के उपाय किये जा रहे हैं। उनमें एक उपाय शान्तिविधान का अनुष्ठान करना भी है। संभवतः दिगम्बर मत में किसी के मरणोपरान्त उस आत्मा की शान्ति अथवा गृह शान्ति हेतु शान्तिविधान या नवगृह विधान की प्रणाली है परन्तु पूजन-विधान का उद्देश्य स्वपरिणामों को उपशान्त बनाना है। अतः यह विधान न केवल मरण प्रसंग में अपितु जन्म, विवाह, गृहप्रवेश आदि किसी भी लौकिक प्रसंग या धार्मिक अनुष्ठानों में किया जा सकता है, क्योंकि इसमें नवदेवों के गुणों का स्मरण किया गया है। यह विधान करते समय अनुक्रमशः पंचपरमेष्ठी, चौबीसतीर्थंकरों, बीसविहरमानों, पाँच भरत एवं पाँच ऐरवतक्षेत्र के भूत, वर्तमान, भावी के मिलाकर सात सौ बीस तीर्थंकरों, तीनलोक के जिन चैत्यालयों, द्वादशांग रूप जिनवाणी, दर्शनविनयादि रूप तीर्थंकरपद प्राप्ति के सोलह कारण, क्षमादि दस यतिधर्म एवं सम्यक्दर्शनादि रत्नत्रयरूप जिनधर्म, जन्म, दीक्षा आदि पाँचकल्याणकों, अयोध्या, श्रावस्ती आदि कल्याणक भूमियों, अतिशय क्षेत्रों, वर्तमान चौबीसी के सहस्रनामों, आदि को मन्त्रोच्चार पूर्वक अर्घ्य चढ़ाया जाता है अर्थात् अक्षत नैवद्यादि द्वारा पूजन किया जाता है।' निःसंदेह यह भक्ति-साहित्य के इतिहास की एक अभूतपूर्व रचना है। शान्तिनाथविधान यह कृति जिनदास कवि प्रणीत है। श्री ताराचन्द जैन ने इस कृति का हिन्दी पद्य में अनुवाद किया है इसमें मन्त्रों का प्रयोग बहुलता से हुआ है। इस विधान का प्रारम्भिक परिचय नवग्रहअरिष्टनिवारकविधान नामक पुस्तक में कर चुके हैं। ' प्रका- अखिल भारतीय जैन युवा फैडरेशन ए-४, बापूनगर, जयपुर पंचम संस्करण यह कृति- गजेन्द्र कुमार जैन, ५ सी/२३ न्यू रोहतक रोड़, नई दिल्ली से प्रकाशित है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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