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________________ 440/मंत्र, तंत्र, विद्या सम्बन्धी साहित्य आरोपित की जाती है। इस महाविधान में ये दोनों विधियाँ मुख्य होती हैं इसी से 'इन्द्रध्वज' यह नाम रखा गया है। इसके अनन्तर सिद्धपूजा की जाती है। तदनन्तर सर्वमध्यलोक संबंधी अकृत्रिम चैत्यालयों की समुच्चय पूजा की जाती है। उसके बाद सुदर्शनमेरु की पूजा का प्रारम्भ कर क्रमशः से मध्यलोक के सर्व अकृत्रिम चैत्यालयों की पचास पूजाएँ की जाती है। यहाँ विस्तार भय से ५० पूजाओं का नाम निर्देश भी नहीं कर रहे हैं। निष्कर्षतः इन्द्रध्वज विधान एक अमूल्य कृति है। किन मन्दिरों पर कौनसे चिह वाली एवं कितने प्रमाणवाली ध्वजाएँ होनी चाहिए इसका भी इसमें सुन्दर वर्णन किया गया है। ऋषिमण्डलमंत्रकल्प पूजाविधान इस पूजा की रचना विद्याभूषणसूरि एवं गुणनन्दिमुनि ने की है।' यह विधान संस्कृत की गद्य-पद्य शैली में गुम्फित है। इसकी रचना हिन्दी पद्य में भी हुई है। हिन्दी में रचा गया यह पूजा विधान संस्कृत की रचना से अधिक विस्तारवाला है। हिन्दी पद्य की रचना श्री लाल जैन ने की है। यह कृति दिगम्बर परम्परा से सम्बन्धित है। यहाँ संस्कृत एवं हिन्दी में रचित दोनों कृतियों पर विचार करेंगे। इन दोनों रचनाओं का अवलोकन करने से यह तथ्य स्पष्ट हो जाता है कि कालक्रम के आधार पर विधि-विधानों में कैसे परिवर्तन आते हैं? इस कृति में संस्कृत अंश के आधार पर श्री ऋषिमण्डल पूजा के सम्बन्ध में यह निर्देश है कि सर्वप्रथम यंत्र तैयार करते हैं फिर विधिपूर्वक मंत्र तैयार किये जाते हैं। उसके बाद यंत्र-मंत्र की साधना की जाती है। फिर क्रमशः चतुर्विंशति तीर्थंकरों, अष्टबीजाक्षरों, पंचपरमेष्ठी, भावनेन्द्र आदि देवों, श्री धृति आदि चौबीस प्रकार की देवियों का मंत्रोच्चारण पूर्वक पूजन किया जाता है। पूजा की समाप्ति होने पर आमन्त्रित देवी-देवताओं का विसर्जन किया जाता है। प्रस्तुत कृति में दशदिक्पाल पूजा, क्षेत्रपाल पूजा, मंत्र साधन विधि भी दी गई हैं। इसके साथ ही इस विधान से सम्बन्धित ऋषिमंडलयंत्र, तीर्थकर कुंड, गणधरकुंड, केवलिकुंड, अग्निमंडल, नाभिमंडल, चन्द्रप्रभामंडल, वरुणमंडल, वायुमंडल, प्रद्मप्रभामंडल, पृथ्वीमंडल, जलमंडल और आकाशमंडल के चित्र दिये गये हैं। ' यह कृति वी.सं. २४८४ में, श्री शांतिसागर जैन सिद्धांत प्रकाशिनी संस्था, श्री महावीरजी (राज.) ने प्रकाशित की है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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