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________________ जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/413 आधार पर इसकी पूर्व सीमा निश्चित की जा सकती है। जिनरत्नकोश (पृ. १५) में ज्ञानार्णव की एक हस्तप्रति वि.सं. १२८४ में लिखी होने का उल्लेख है। यह इस कृति की उत्तरसीमा निश्चित करने में सहयोगी है। इसकी शैली सरस और सुगम है। इससे यह कृति सार्वजनिक बन सकती थी; परन्तु आचार्य शुभचन्द्र के मत से गृहस्थ योग का अधिकारी नहीं है यह कृति जन प्रसिद्ध नहीं बन पाई। सामान्यतः इस रचना में निम्नलिखित विषय चर्चित हुए हैं - बारह भावना, ध्यान, ध्याता, ध्येय का स्वरूप, सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, पंच अणुव्रत, पंच समिति, कषाय, इन्द्रियजय, त्रयतत्त्व, मन वश करने का उपदेश, राग-द्वेष दूर करने का उपाय, आर्तध्यान, रौद्रध्यान, आसनजय, प्राणायाम, धर्मध्यान, पिण्डस्थादि चार प्रकार के ध्यान, शुक्लध्यान और धर्मध्यान का फल आदि। ज्ञानार्णव (सर्ग २१-२७) में यह विशेष रूप से कहा है कि आत्मा स्वयं ज्ञान, दर्शन और चारित्र रूप है। उसे कषायरहित बनाने का नाम ही मोक्ष है। इसका उपाय इन्द्रिय पर विजय प्राप्ति है। इस विजयप्राप्ति का उपाय चित्त की शुद्धि है इस शुद्धि का उपाय राग-द्वेष पर विजय प्राप्त करना है। इस विजय का उपाय समत्व है और समत्व की प्राप्ति ही ध्यान की योग्यता है। इस प्रकार जो विविध बातें इसमें आती हैं उनकी तुलना योगशास्त्र (प्रका. ४) के साथ करने योग्य हैं। ज्ञानार्णव में १०० श्लोक लगभग प्राणायाम विधि से सम्बन्धित हैं। अनुप्रेक्षा विधि विषयक लगभग २०० श्लोक हैं। इसके सर्ग २६ से ४२ तक में प्राणायाम एवं ध्यान साधना के बारे में विस्तृत विवेचन हुआ है। इस प्रकार हम देखते हैं कि योग-साधना के विविध आयामों को प्रस्तुत करने वाली यह कृति अपने-आप में अनूठी है। पुनः यह ध्यान देने योग्य हैं कि प्राणायाम, ध्यान, भावना व्रतादि का अनुपालन ये सभी प्रक्रियाएँ योग-साधना के अंग हैं तथा ये ही क्रियाएँ विधि-विधान के नाम से अभिव्यक्त होती हैं। इस दृष्टि से यह ग्रन्थ महत्त्वपूर्ण है। टीकाएँ - ज्ञानार्णव पर तीन टीकाएँ प्राप्त होती हैं - १. तत्त्वत्रयप्रकाशिनी- यह दिगम्बर श्रुतसागर की रचना है। २. टीका- इसके कर्ता का नाम नयविलास है। ३. टीका- हय अज्ञातकर्तृक है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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