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________________ जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/409 कृति में से उद्धृत की गई हैं। इस वृत्ति में प्रसंगोपात्त अनेक कथाएँ आती हैं उनमें अभयकुमार, आनन्द, कौशिक, कामदेव, कालसौरिकपुत्र, कालकाचार्य, चन्द्रावतंसक, चिलातीपुत्र, दृढ़प्रहारी, नन्द, परशुराम, ब्रह्मदत्त, भरत, मरूदेवी, मण्डिक, रावण, रोहिणेय, संगमक, सनत्कुमार चक्रवर्ती, सुदर्शन, सुभूम और स्थूलिभद्र आदि के उल्लेख हैं। योगिरमा नामक एक टीका दिगम्बर मुनि अमरकीर्ति के शिष्य इन्द्रनन्दी ने रची है। वृत्ति - यह अमरप्रभसूरि ने लिखी है। टीका-टिप्पण - यह अज्ञातकर्तृक है। अवचूरि - इसके कर्ता का नाम ज्ञात नहीं है। बालावबोध - इसके प्रणेता सोमसुन्दरसूरि है। वार्तिक - इसके रचयिता का नाम इन्द्रसौभाग्यगणी है। यौगिक क्रियाएँ ___यह रचना हिन्दी गद्य में है और सचित्र है। मुनि किशनलाल जी द्वारा विरचित यह कृति यौगिक क्रियाओं की प्रविधि से सम्बन्धित है। योग की ये क्रियाएँ अपने आप में परिपूर्ण हैं। योग परम्परा नहीं, अपितु एक विधि है जिसे योगियों ने दीर्घ साधना और अनुभवों से खोजा है। शारीरिक यौगिक क्रियाएँ हर एक व्यक्ति कर सकता है। इन क्रियाओं से शरीर के प्रत्येक अंग को सक्रियता मिलती है। आसन-प्राणायाम के प्रयोग करते-करवाते समय यह अनुभव हुआ है कि वृद्ध या अस्वस्थ व्यक्ति जो पूरी तरह आसन नहीं कर पाते हैं, वे यौगिक शारीरिक क्रियाओं को सरलता से कर सकते हैं तथा इन क्रियाओं द्वारा अपने अंगों में शक्ति और सक्रियता के विकास का अनुभव कराया जा सकता है। ____ यौगिक शारीरिक क्रियाएँ साधना एवं ध्यान की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं। मेरुदण्ड की क्रियाएँ शक्ति को ऊर्ध्वगामी बनाने एवं स्वास्थ्य लाभ प्रदान करने में सहयोगी बनती हैं। साधना के विकास के लिए मेरुदण्ड का स्वस्थ, लचीला और सक्रिय होना आवश्यक है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में यौगिक क्रियाओं की प्रासंगिकता अनिवार्य प्रतीत होती है। आज के युग में जीने वाले व्यक्तियों के पास समय का अभाव होता जा रहा है। शहरी वातावरण में पलने वाले लोगों को तो स्थान की कठिनाईयों का भी सामना करना पड़ रहा है। शहरी सभ्यता ने मनुष्य के जीवन को प्रकृति से दूर कर दिया है। उसके पास शारीरिक श्रम के लिए न खेत है और न घूमने के लिए खुला मैदान है जहाँ शुद्ध प्राणवायु को ग्रहण कर वह स्वस्थता को उपलब्ध कर सके। आज व्यक्ति इतना अनियमित जीवन जीने लगा है कि चाहने के बावजूद भी योगासन एवं इसी तरह की अन्य प्रविधि के लिए अपने समय को लगा नहीं पाता। अतः समय के अभाव में आसनों के लाभ से वंचित न रहे, उनके लिए यौगिक क्रियाएँ आवश्यक हैं। आसनों की अपेक्षा इनमें समय कम लगता है। ये Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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