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________________ जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/397 क्रिया करता है, फिर बैठता है और फिर खड़े होकर अपनी यात्रा करता है। अतः आसन का क्रम भी शयन, निषीदन और ऊर्ध्व-स्थिति क्रम से रखे गए हैं। शयन आसन पीठ के बल, पेट के बल एवं सीने के बल लेटकर किये जाते हैं। ये आसन तेरह प्रकार के कहे हैं। वे निम्न हैंशयन आसन - लेटकर किये जाने वाले आसन १. कायोत्सर्गआसन २. उत्तानपादासन, ३. पवनमुक्तासन, ४. भुजंगासन, ५. शलभासन, ६. धनुरासन, ७. मकरासन, ८. सर्वांगासन, ६. हलासन, १०. मत्स्यासन, ११. हृदयस्तंभासन, १२. नौकासन, १३. वज्रासन (सुप्त व्रजासन) निषीदन आसन - बैठकर किये जाने वाले आसन। ये आसन बीस प्रकार के कहे हैं, उनके नाम ये हैं - १. सुखासन, २. स्वस्तिकासन, ३. पद्मासन, ४. योगमुद्रा, ५. बद्धपद्मासन, ६. तुलासन ७. उत्थित पद्मासन, ८. उत्कटासन, ६. गोदुहिकासन, १०. गौमुखासन, ११. जानुशिरासन, १२. पश्चिमोत्तानासन, १३. शशांकासन, १४. अर्धमत्स्येन्द्रासन, १५. उष्ट्रासन, १६. सिंहासन, १७. ब्रह्मचर्यासन, १८. सिद्धासन, १६. हंसासन, २०. कुक्कुटासन ऊर्ध्वआसन- खड़े होकर किये जाने वाले आसन। ऊर्ध्व आसन ग्यारह प्रकार के बताये गये हैं वे निम्न हैं - १. समपादासन, २. ताड़ासन, ३. इष्ट वन्दन, ४. त्रिकोणासन, ५. मध्यपाद शिरासन, ६. महावीरासन, ७. हस्ति सुण्डिकासन, ८. उड्डियान, ६. गरूडासन, १०. नटराजासन, ११. पादहस्तासन विशिष्ट आसन - ये चार प्रकार के दिये गये हैं - १. शीर्षासन, २. अर्ध शंखप्रक्षालन, ३. मयूरासन, ४. चक्रासन पूर्वोक्त आसनों का निरूपण पाँच रूप से किया गया है - १. प्रत्येक आसन का स्वरूप, २. आसन करने की विधि, ३. आसन करने की अवधि, ४. आसन से होने वाले लाभ, ५. आसन का चित्र किन्हीं-किन्हीं आसनों में कुछ विशेष कथन भी किये हैं। किस आसन में क्या सावधानी रखी जानी चाहिए उसका निर्देश भी किया गया है। प्राणायाम- प्रस्तुत कृति के अन्तिम भाग में प्राणायाम विधि का उल्लेख करने के पूर्व प्राणायाम का स्वरूप, प्राणायाम के प्रकार, प्राणायाम का सम्बन्ध, प्राणायाम के परिणाम इत्यादि का विवेचन किया गया है। प्राणायाम का अर्थ है - श्वसन क्रियाओं का सम्यग् नियमन और नियोजन करना । प्राणायाम श्वास-उच्छवास का सम्यक् अभ्यास है। प्राण का व्यवस्थित विस्तार और संयम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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